एक पहाडी माँ, बेटे को पत्र में अपने मन का गुबार इस तरह निकाल रही है ;
सूट-बूटै की चमचम
अर 'लौंण-खाण' का भौर,
भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे
परदेश गयां छोरा,
कब आलू चुचा घौर।
ना खै-कमैकी जाणी,
सुद्दी-मुद्दी की श्याणी ,
दुनिया की देखा-देखी
अर पड़ोस्यों की सौर ,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
ना डोखरी-पुङ्गडी गोड़ी,
झठ अप्णु मुल्क छोड़ी,
द्वी बेल्यौ भी नी पाई
कखि हमुन अपणा दौर ,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
ब्वारी इखुलि रैंदी बरणाणी,
खाणै की ह्वैई निखाणी,
नौना-बाळा गुठेरा फुंड रिचेणा,
इन ग़ाड़ी तौंकी लौर,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
कखि दवै-दारु नी च,
क्वी अपणु सारु नी च,
वैध मू ल्हीजाण कनकै
ज्यु आलू कै तै जौर,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
गौँका गौं खाली ह्वैगीन,
सभी उन्द गैं बौगीन,
माळ्या खोळा का भैडा
अर तळ्या खोळा का मौर,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
त्वे आँखी रैंदीन खुजाणी,खुदेँणु रैन्दु प्राणी,
रात नखरा सुपिना आंदा
जिकुड़ी बैठिगी डौर,
भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे
परदेश गयां छोरा,
कब आलू चुचा घौर।
गढ़वाली कविता , जिसमे माँ अपने प्रदेश स्थित बेटे को पत्र लिख कर कह रही है कि जमाने की चमक-दमक से प्रभावित हो,लोगो की देखा-देखी तू भी बहुत साल से प्रदेश गया हुआ है, दुनिया की शानोशौकत और अपना जीवन-स्तर ऊपर उठाने की चाह में , बेटा तुझे प्रदेश गए बहुत साल हो गए, तू घर कब आयेगा ?..............?
सूट-बूटै की चमचम
अर 'लौंण-खाण' का भौर,
भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे
परदेश गयां छोरा,
कब आलू चुचा घौर।
ना खै-कमैकी जाणी,
सुद्दी-मुद्दी की श्याणी ,
दुनिया की देखा-देखी
अर पड़ोस्यों की सौर ,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
ना डोखरी-पुङ्गडी गोड़ी,
झठ अप्णु मुल्क छोड़ी,
द्वी बेल्यौ भी नी पाई
कखि हमुन अपणा दौर ,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
ब्वारी इखुलि रैंदी बरणाणी,
खाणै की ह्वैई निखाणी,
नौना-बाळा गुठेरा फुंड रिचेणा,
इन ग़ाड़ी तौंकी लौर,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
कखि दवै-दारु नी च,
क्वी अपणु सारु नी च,
वैध मू ल्हीजाण कनकै
ज्यु आलू कै तै जौर,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
गौँका गौं खाली ह्वैगीन,
सभी उन्द गैं बौगीन,
माळ्या खोळा का भैडा
अर तळ्या खोळा का मौर,…… भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे ……।
त्वे आँखी रैंदीन खुजाणी,खुदेँणु रैन्दु प्राणी,
रात नखरा सुपिना आंदा
जिकुड़ी बैठिगी डौर,
भिन्डी साल ह्वैग्या त्वे
परदेश गयां छोरा,
कब आलू चुचा घौर।
गढ़वाली कविता , जिसमे माँ अपने प्रदेश स्थित बेटे को पत्र लिख कर कह रही है कि जमाने की चमक-दमक से प्रभावित हो,लोगो की देखा-देखी तू भी बहुत साल से प्रदेश गया हुआ है, दुनिया की शानोशौकत और अपना जीवन-स्तर ऊपर उठाने की चाह में , बेटा तुझे प्रदेश गए बहुत साल हो गए, तू घर कब आयेगा ?..............?