Monday, October 18, 2010

मेरी दादी बोल्दी छै....

जनि करला,
तनि भरला,
दिन का बाद रात च,
नपी-तुलीं बात च,
पुराणि थेक्लीन भी पैली
घुंडी-क्वीन्यों मा ही दरकण !
मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
पिछ्नै ही सरकण !!

बिना हिलायाँ त
क्वी पत्ता भी नि हिल्दू,
भाग मा जैगा जथ्गा हो,
उथ्गा ही मिल्दू,
भली दुसरै की देखीकी
बल नि गाड्नी टर्कण !
मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
पिछ्नै ही सरकण !!

खुट्टा उथ्गा ही पसार्निंन,
आफुमू चादरी हो जतणी,
बाट्टा चल्दु कै मा भी
सुदी जुबान नी ख़तणी,
पठवा बांध्युं चैन्दु
जब घाघुरु लगु नरकंण !
मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
पिछ्नै ही सरकण !!

हिन्दी में इस गढ़वाली कविता का सार यह है कि जैसा करोगे वैसा भरोगे, इंसान को औकात से अधिक नहीं बढना चाहिए !