Thursday, February 24, 2011

सस्यों !

छवि गूगल से साभार

डाली-बोट्ल्यों मधुमास छौ,
डांडी-कान्ठ्यों उल्लास छौ,
माटु-कमेडू पुतेगी छ्यु,
कूडैगी ऐथर-पैथर पाली पर,
खुदेड गीत फूलीगी छाया ,
पंया, ग्वीरीयाल की डाली पर !
क्वांसी-जिकुड़ी सास छाई,
घौर आण की आश छाई,
स्काप-पाख्ली छोडी की,
पिंगली चादरी ओढ़ी की,
गौंकि उकाल, उन्ध्यार मा,
इकटक लगीं छै धार मा,
ज्यू कुम्लायुं देखीक बुरांश,
बुकरा-बुकरी रोइ हिलांश !!

Sunday, February 20, 2011

सोना कु भाव बल सुनार ही जाणदू !


- दैनिक हिंदुस्तान के सौजन्य से, बड़े अक्षरों में पढने हेतु कृपया चित्र पर किल्क करे !

खैरी-परेशानी कख नीछ,
पर इनु क्वी अंगलतू ही होंदु,
जु वी खैरी दगडी लड़णे की ठाणदू ,
पूराणोंन भी इलैही त बोली,
कि सोना कु भाव बल सुनार ही जाणदू !


खाण-रैण कु मिलू अगर
भलु-भलु ही सब्बी धाणी,
कु नि चांलु इन अपणा वास्ता,
हर क्वी त यख भलु ही छाणदू,
पूराणोंन भी इलैही त बोली,
कि सोना कु भाव बल सुनार ही जाणदू !

बोलण कै तै नी आन्दु
पर क्वी-क्वी जाणदू गिचु बुजण ,
हर क्वी चांदु सैणा बाटा हिटणु ,
पर क्वी-क्वी जाणदू ढुंगु पुजणु,
वी समझदार छ जु
सब्बी धाणी एका लाठन नी हाणदू.
पूराणोंन भी इलैही त बोली,
कि सोना कु भाव बल सुनार ही जाणदू !

हामुन-तुमुन ठुकरै यालीन भले,
वू गारा-ढुंगा, जौमा
कभी नांगा खुटौन नाच्यां,
पर देखणे की बात याछ कि

क्वी भैरवालू कथ्गा वूँ तै माणदू,
पूराणोंन भी इलैही त बोली,
कि सोना कु भाव बल सुनार ही जाणदू !



Saturday, February 19, 2011

उपकार !

एक प्यारा सा गीत है उपकार फ़िल्म का, हर खुशी हो वहां.... उसी तर्ज पर यह गढ्वाली गीत प्रस्तुत है;

हो सारु सुख वीं जगा, जौं जगौं मा तू रौ,
क्वी भी खैरी न हो, जौ जगौ मा तु रौ ! हो सारु सुख......!

छ जोन धुंधली .......हो-होहो...
छ जोन धुंधली भले, धार-डांडा फुण्डै
तेरा बाटौं कभी क्वी अंध्यारु न रौ,
हो जुन्याली सदानी व रात तख,
जौं रात्यों ड्रील कु तु ढंगारु मा जौ,
क्वी भी खैरी न हो, जौ जगौ मा तु रौ ! हो सारु सुख......!

मी अन्ध्यारु....... हो-होहो...
मी अन्ध्यारु ही भान्दु एलै ई यख,
ये मा छैल भी अपणु नज..रनी आन्दु,
रौ उज्यालु सदानी ही वीं-वीं जगा,
काम कू जौं जगौं- जौं जगौं मा तु जौ,
क्वी भी खैरी न हो, जौ जगौ मा तु रौ ! हो सारु सुख......!

ह्युंद, बस्ग्याल... हो-होहो...
ह्युंद, बस्ग्याल ही मेरी दग्ड्याणी छन
गीली मुख्डी मा पालु नजर नी आंदु,
रौ उबाणी सदानी सिर्वाण तेरी,
सेण कू रात जब तु बिछोंणा मा जौ,
क्वी भी खैरी न हो, जौ जगौ मा तु रौ ! हो सारु सुख......!

Thursday, February 17, 2011

बसंत !

रै-लय्या का फूल भी
यु बथौन्दन तंत ,
डांडी-कान्ठ्यों मा
अब ऐगी बसंत,
पर तब लगदु कि हां,
ह्युंद ख़त्म ह्वेगी,
डाली-बोट्ल्यों मा,
पिन्ग्लू फुल्यार ऐगी,
जब ब्यान्स्री उठीक !
घर्र-घर्र कखी परेडै की
रोंण की आवाज
कंदुडु मा पड्दी,
गदरा पार बिटीक !!

Wednesday, February 16, 2011

भेद !

हे  ब्वे, तु जाण
तेरी ब्वारी किलै च नटीं,
झगडा सासू-ब्वारी करू ,
अर, मनौण मी पडू,
मेरी जू क्याच फटीं।
तु जाण,
तेरी ब्वारी किलै च नटीं॥
उन्द जाण की आश मा,
ह्युं पिघली कैलाश मा,
फिर भी गंगाजी ,
किलै च घटीं ।
तु जाण,
तेरी ब्वारी किलै च नटीं॥

Monday, February 14, 2011

नौ मा क्यच धार्यु !

गौंकू नौ तरपाणी,
अर गौं निरपाणी,
बौंण-पुंगड़ियों की धाणी,
अर ख़ाली परौ मेट्यु पाणी,
वीं ख़ाली पर, जै पर छोटा मा
एक छोड़ पर हमन पाणी चौंण,
अर हाका छोड़ पर कुलु करन,
हा-हा॥ क्वी और उपै भी त नि छौ !!


भावार्थ: पहाडी गाँवों की पानी की विकराल समस्या ! लोग बरसात का पानी पहाडी ढलानों पर छोटे-छोटे गद्दे नुमा तालाब जिन्हें स्थानीय भाषा में ख़ाली कहते है, में इकठ्ठा करते है ! और इन्ही तालाबों पर मनुष्य और मवेशी अपना गुजारा करते है ! बचपन की यद् आती है जब तालाब के एक कोने पर हम शौच करते थे और दूसरे छोर पर उसी तालाब के पानी को मुह में डाल कुला करते थे ! क्या करे, कोई और उपाय भी तो न था !

स्याणों की बात !

स्याणोंगु बोल्यु च कि
थोड़ा अक्ल भी दौड़ाण,
खाली नौ परै ही नि जाण !
सेठुगा लाटा-काला
बिजां छन गौं मा,
क्याच धरयुं नौ मा !
वा औंसी की रात छै,
हाल ही मकै बात छै !
मैगाई, बेरोजगारी कु जोर,
गौं मा दिख्यो घुस्गी चोर !
अकेली मौ छै मूडी पर,
धावा बोली सेठुगी कूड़ी पर !
मोर-संगाड बीटिंक घुस नि पाई,
त कुलाणा बिटिकी सेंध लगाईं !
कुछ नी मिली जब काकर-खोली,
तब जैक कोदा कि कुठार खंद्रोली !
धन-माया का नौ पर,
ऐका कोणा पर कित्लोंगा भेंड मिलिन,
अर नीस मुस्लेंड ही मुस्लेंड मिलिन!!

भावार्थ: सयाने, समझदार लोग कह गए कि अक्ल भी इस्तेमाल करनी चाहिए, सिर्फ नाम में कुछ नहीं रखा ! गाँव में ऐसे बहुत से नाम के सेठ मिल जायेंगे ! ऐसे ही एक आमावास्य की रात को गाँव में चोर घुस गया, निशाना बनाया सेठ जी के मकान से मशहूर एक अलग मकान को ! दरवाजे से नहीं घुस पाया तो मकान के पीछे से सेंध लगाईं ! इतनी म्हणत करने पर जब अन्दर घुसा तो कुछ नहीं मिला ! फिर आखिर में एक लकड़ी के बक्से को टटोला मगर वहा भी कुछ टूटे हुए वर्तनो के हत्थों और चूहों के मॉल के सिवाए कुछ नहीं मिला!