Friday, September 12, 2014

वक्त










जबारी छै स्या छोट्टी ब्वारी, 
खेल्दी छै स्या मी दग्डी गारी। 
जांदु बौण कबारी घास भारी, 
अर कबारी धाण गुठेरा,सारी।।  

जब ह्वैगी ब्वारी थोड़ा ज्वान,
आई वीं भी थोड़ा माया ज्ञान।   
पैसा-टकों मा बैठी वींकू ध्यान, 
अर भाग्युं परदेश मी भग्यान।।

ह्वैग्या अद्ध-बुढ़ेड़ अबकी बारी,
वी खेल ह्वैगी फिर सी जारी।   
यत द्वी पौड़ी जाँदा टोप मारी,
यत खेल्दी रैदां द्वी बट्टी गारी।।