भिंडी मेटणैं की दोंन, अर कम मेट्यॉ कू सोग,
टकों का बाना आज संग्ती, बौऴेण ल्ग्याँ लोग ! टकों का बाना..... !!
लेणँकू रै न क्वी ईमान, देणकू तै खतीं जुबान,
लेंदी दां का सौ लारा-दारा, देंदी दां कु टप बोग ! टकों का बाना..... !!
छुंयों-छुंयोंमा देंदा टरकै, थूकमा यूंन पकोड़ी पकै,
लाँणकू नी थेक्ऴी गात, ख़ाणकू चैंदु विलैती भोग ! टकों का बाना..... !!
चोर बणिगैन धन्ना सेठ, काटि-काटीक लुकारू पेट,
धीत नी भरेंदी यूंकि, ऑर ख़ाणें रैंदी सदानी मोंग ! टकों का बाना..... !!
अति दुसरै की दां नि सम्झी. माँ यूंन माँ नि सम्झी,
देवतों का ये मुल्क परै, नासूर बणीगे अब यू रोग ! टकों का बाना..... !!
चोर बणिगैन धन्ना सेठ, काटि-काटीक लुकारू पेट,
धीत नी भरेंदी यूंकि, ऑर ख़ाणें रैंदी सदानी मोंग ! टकों का बाना..... !!
अति दुसरै की दां नि सम्झी. माँ यूंन माँ नि सम्झी,
देवतों का ये मुल्क परै, नासूर बणीगे अब यू रोग ! टकों का बाना..... !!
तथ्गा ना तुम बक्सा भरा, न भिंडी हबड़-दबड़ करा,
वैन उथ्गा ही ख़ाण भुलों, रैलू जैकु जथ्गा जोग ! टकों का बाना..... !!
हिन्दी सार: अधिक पाने की लालसा और कम पाने का गम, पैसे के खातिर लोग पागल हो गए है ! किसी से जब उधार लेना हो तो कोई ईमान नहीं , किसी को देने को कोई पक्की जुबान नहीं, जब खुद किसी से लेना हो तो मीठी-मीठी बाते और जब लौटाने की बात करो तो फोन तक न उठाना ! सारे चोर-डाकू आज बड़े धन्ना सेठ बने बैठे है ! पेट नहीं भरता इनका , पैसे के खातिर ये माँ को माँ नहीं समझते ! लेकिन दोस्तों ! ये भूल रहे है कि हरएक का जाना निश्चित है, एक लिमिट से ज्यादा बटोरकर भी क्या कऱेगे ?