परचेत!
कन्धा मा,
बंठा-गागर लीक,
थक जान्दु
सारी-सारीक,
दूर गौंगा धारा बिटीक,
दिन-दोफरी पाणी की घेत ।
न क्वी वै तै पुछ्दु,
और न उ आफ़ु पेन्दु,
दिनभर,
प्यासू ही रै जान्दु,
खडौण्या,निर्भैगी लाटु परचेत ॥
़़़़़़़़
सिफै !
मां भी छोडिगी छै,
लुकारी डेली मा धारीक
कब तलकै
ब्वै रांड भी,
इनि दशा मा खैचू,
गौ वालौन भी.
धीरु-धीरु,
बन्द करली छौ
देण वी तै पैंछु,
और तब वू,
बचपन बिटिकी ज्वानि तक,
लुकारी डेल्यों मा,
भूखौ,
रात-दिन सिपाणू रै।
अर इन्नी सिपै-सिपैग,
एकदिन
वू बणिगे सिफै ॥
समझ कुछ कुछ आया ...
ReplyDeleteगौदियाल जी .. आप अपने मेल देंगें ... कभी कभी बात करने का भि मन करता है ...
जितना समझ आया, अच्छा लगा. कठिन शब्दों के अर्थ भी नीचे लगा दीजिये, आनंद कई गुना बढ़ जाएगा.
ReplyDeletegadh wali bhashha main nhi janati par jitna kuch ssmhj paai vo ek lay me acchi lagi.kripaya hndi me likhta to jyada aanand aata.
ReplyDelete