कुजाणी कख खेली दिदन इनु तगुडु दौ,
वीआईपी बणी घुमणी च गौंकी खतीं मौ
नांगी पाख्डियों लीक, गुठेरों नाचणी रांदी,
सुरीली बांद रंगीली, पिंगली बिलैती बौ !
द्वी घडी स्या त घर मू टिक नी पान्दी,
बिन खसम पुछ्या घुम्णौ चली जान्दी,
ना तैंतै ससुरा की डौर,न मदर-इन-लौ,
कुजाणी कख बीटीकि लाइ तै बिलैती बौ !
ढंगका त नी लगदा तैका क्वी भी लक्ष,
सुबेर ससुरातै छै पुछणी बाथरूम कखच,
उन त शरीफ इथ्गा च कि जन क्वी गौ,
पर कै ढगार फंसी बिचारी बिलैती बौ !
तभी बोली,बिना देख्या-भैयां ब्यो नी करन,
छोड़-कूड़ी भी देखण, सूरत पर नी मरन,
नतरै मेरी चार्युं पडला, कै बस्गाली रौ,
तब रो-मरू, या ज्यू भी करू बिलैती बौ !
वीआईपी बणी घुमणी च गौंकी खतीं मौ
नांगी पाख्डियों लीक, गुठेरों नाचणी रांदी,
सुरीली बांद रंगीली, पिंगली बिलैती बौ !
द्वी घडी स्या त घर मू टिक नी पान्दी,
बिन खसम पुछ्या घुम्णौ चली जान्दी,
ना तैंतै ससुरा की डौर,न मदर-इन-लौ,
कुजाणी कख बीटीकि लाइ तै बिलैती बौ !
ढंगका त नी लगदा तैका क्वी भी लक्ष,
सुबेर ससुरातै छै पुछणी बाथरूम कखच,
उन त शरीफ इथ्गा च कि जन क्वी गौ,
पर कै ढगार फंसी बिचारी बिलैती बौ !
तभी बोली,बिना देख्या-भैयां ब्यो नी करन,
छोड़-कूड़ी भी देखण, सूरत पर नी मरन,
नतरै मेरी चार्युं पडला, कै बस्गाली रौ,
तब रो-मरू, या ज्यू भी करू बिलैती बौ !
उपरोक्त गढ़वाली कविता का हिन्दी सार यह है कि किसी ठेठ पहाडी गाँव में एक पढ़ा लिखा तेजतर्रार भाई एक अंग्रेज लडकी से शादीकर गाँव में ले आता है ! तो गाँव का ही एक दूसरा बंधू उस पे नुक्ताचीनी करता है कि इसने ऐसा तगड़ा दांव कहाँ खेला ? इसका परिवार तो आजकल गाँव में वी आई पी बन गया है ! उस अंग्रेज बहु को गाँव के रीतिरिवाज मालूम नहीं, साथ ही गाँव में बेसिक और बुनियादी सुविधाओं की कमी है, जिससे उसे कष्ट हो रहा है ! गाँव की दुनियादारी से बेखबर , वह सुबह के वक्त अपने ही सासर से पूछती है कि टोइलेट किधर है ? जबकी गाँव में तो ......
कुछ समझ में आया ही नहीं कुछेक शब्दों के...तो क्या लिखूं.....
ReplyDeleteअगर सम्भव हो तो क्या आप अनुवाद करेंगे...ताकि हम भी जान सकें.....कुछ मन हुआ पहाड़ी में लिखा पढ़ने को....
वंदना जी, आपका शुक्रिया , हिन्दी अनुवाद जोड़ दिया है !
ReplyDeleteगोदियाल जी आपके इस ब्लाग सहित दोनों ब्लाग BLOG WORLD .COM में जुङ गये हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद
halanki pahari stuff kuchh kathin lagta hai,bavjud iske bhawarth samajhne main koi kathinai nahi hoti hai,
ReplyDeleteachhi prastuti hetu abhaar,
बहुत सुन्दर और अच्छी लगी गडवाली कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
शब्दार्थ - कुजाणी= न जाने , दिद न = भाई ने , तगुड= बड़ा , गों कि= गांव की, नांगी= नंगी, पंखडियो = हाथो, गुठेरों = गो शाला के बाहर गए को बांधने की जगह , बांद= सुंदर लड़की , पिंगली = पीली, बिलैत = विलायत ( विदेश) बौ= भाभी
ReplyDeleteखसम = पति, पूछ्या= पूछना , स्या= वह , घुम्णों= घूमने, डौर= भय , कख बिटिकी= कहाँ से , लगदा = लगते हैं , तैं का = उसके लक्ष = लक्षण , पुछनी= पूछ रही है , कखच = कहाँ है , ढगार= बिल में , गुफा में , ब्यो = विवाह , छोड़ कुडी= जमीं जायदाद ,पडला = गिरोगे , बस्गाली= बरसाती, रौ= रौला, नदी , नाले आदि .
भैजी इन ता बता की लै कख बाटी छाई यीं बौ थैं, भौत सुंदर होली .
हा-हा... खंकरियाल जी,
ReplyDeleteसर्वप्रथम आपकू हार्दिक धन्यवाद करदू कि आपण बहुत बढ़िया ढंग सी शब्दार्थ करी मेरी कविता कू . उन त मैं भी सोच्दू रंदू छौ कि इन करू, मगर बात या च कि आज कू जू हमारू पहाडी युवा भैर एगी वैगु यां सी क्वी सरोकार नी, जू लोग रूचि रख्दन वूं तै लगभग समझ मा ऐ ही जांदी. ये वास्ता आलस्य करी देन्दु .
हां , जख तक बौगू सवाल च त मिलिगी छाई दिल्ली फुन्ड :) :)