लौकिं कुयेड़ी,
बस्गाऴी बौछार,
ज्वानि का दिन चार,
बाट्टू हेरी-हेरीक
पळेखिगिन आँखी,
कब आलू तू
द्वी मैनै की छुट्टी
हे मेरा सिपै-सलार !
निरभैगी, बतौ तू ज़रा
इनु क्वी दिन-बार,
नि आन्दु हो जै दिन
मेरी जिकुड़ी मा,
तेरी याद, त्व़े पर प्यार,
क्य बुध-भिप्प्यार,
क्य छंचर-इतवार !!
और अब हिन्दी सार : बिरहन अपने सैनिक पति को पत्र लिखकर कह रही है कि
पहाड़ों में बरसात का मौसम चरम पर है,ऊपर से ये जवानी चार दिन की है, तम्हारी
राह तकते-तकते आँखे थक गई , दो महीने की छुट्टी कब आ रहे हो !
हे निष्ठुर ! कोई ऐसा दिन-वार बताओ, क्या बुध-बृहस्पतिवार, क्या शनिवार- रविवार,
जब तुम्हारी याद और तुम पर मुझे प्यार न आता हो !
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