ऊं दिनु की गाफ़िल*, बिजां औंदी याद,
जब मेरा पोस्ट-ग्रेजुएट होण का बाद,
बीस-बाइस सालौ, ज्वान गबरु होन्दु छौं,
माँ की वीं बात परैं, बुकरा-बुकरी रोंदु छौं
कि कख रैन्दि जाँणू तू रोज तन झुम्दी,
ततुरु दिन काट्दी तू सुद्दी लंडेरु घुम्दी।
हे निर्भैगी !
और नी करि सक्दि त मटरै बिण्दू,
कखी पुङ्ग्डॉ मा क्वी पगारै चिण्दू,
कामै चीज त तिन क्वी भि नि सीखी,
क्य पाइ तिन तथा पढि-लिखीकी ??
गाफ़िल*, =बेपरवाह
अजगालै पढ़ैलिखै घुमणा खुणै ही ह्वैग्याई। सार्थक गीत।
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