इनि बांदों म की बांद तू
जन औंसी की काळी रात
पुरणमासी कू चाँद तू,
फैलीं च संगती मुल्क़ मा य हाम।
तेरी स्य् स्वांणी मुखड़ी ख़ास
जन मेरा गढ़देशै की
ह्यू सी लदगद ह्यूंदया मास
सैरी हिवाळी डांडी हो तमाम।
अर मी हरवक्त बस,
ई स्याणि करदि रैंदु
काश, मैं वूँ रौंत्याली डांड्यों पर
अफु सैणि इन चमकैंदु
जन क्वी व्याखुनिकु सीलु घाम।
यो व्यखुनिकु सी़लु घाम कतगा मारक हूंदा।
ReplyDeleteHa-ha-ha.... Vikesh ji e tai boldan man ku buthyn. :-)
Delete