भिन्डी टका-पैंसा मेटणैकी अत्बताट मा,
अपणा मीन सब्बी छोड्या आद्दबाट मा।
क्वी छोड्या सुब्कदा कखि क्वी लराट् मा,
अपणा मीन सब्बी छोड्या आद्दबाट मा।
हाथु-खुटून सन्कोणा रैन ज्यू कणाट मा,
खांस्दा-कणांदा दाना छोड्या बब्डाट मा ,
गौं सयाणा, अपणा-विराणा गुमणाट मा,
अपणा मीन सब्बी छोड्या आद्दबाट मा।
ह्यूंद बीती, बस्ग्याल ऐ सर्ग गग्डाट मा,
माँजी बाट्टु हेरदी रै घुंडाभाचि खाट मा,
नी सूंणी कैकी ऊंद जाणै की रंगताट मा,
अपणा मीन सब्बी छोड्या आद्दबाट मा।
रौली-बौळयों कू ठण्डु पाणी गम्ग्याट मा,
डांडी- कान्ठ्यों कू बथों रैगी स्वुंस्याट मा,
रै चौक भैंसी कू किड़ाट ,गौड़ी अड़ाट मा,
अपणा मीन सब्बी छोड्या आद्दबाट मा।
यख़ दिन बेचैन मन्ख्यों का गब्लाट मा,
रातू नीँद औंदी नी च कुकुरा लुल्याट मा,
याद औंदी काफ्ली,कोदै रोटि कब्लाट मा,
अपणा मीन सब्बी छोड्या आद्दबाट मा।
पहाड़ी ढुङ्गा,गारा भूल्यूँ शहरी माटा मा,
यख अपणी ही आवाज भूल्यूं चब्लाट मा,
आफु भी सुखि रैनी सक्युँ ठाठ-बाट मा,
अपणा मीन सब्बी छोड्या आद्दबाट मा।
कतगा यथार्थपरक बात ब्वालि आपला। अपुड़ू घार-गुठ्यार छ्वडणौ दुखता हम लोगुं थैं छईंचा, पर अग्नै क्या करै सकद ये फरि भिता स्वचुणि प्वाड़लू।
ReplyDeleteAabhar Vikesh ji.
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