कैमा लगौ मी खैरी अपणी,.......२
स्वामी जी छोडीकी परदेश गैन,
स्वामी जी छोडीकी परदेश गैन,
इन्नी बीती जिंदगी सैरी अपणी।
कैमा लगौ मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2
ससुराजी सूणीकी पट बोग मारदा,
ससुराजी सूणीकी पट बोग मारदा,
सासु जी कंदडू की बैरी अपणी।
कैमा लगौ मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2
दयूर,जिठाणा क्वी छूँ नी धरौंदा,
दयूर,जिठाणा क्वी छूँ नी धरौंदा,
नंण्द,जिठाण मनै की जैरी अपणी।
कैमा लगौ मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2
ह्यूद-बसिग्याळ सैरू यकुली काटी ,
ह्यूद-बसिग्याळ सैरू यकुली काटी ,
मिन मोण अछाणामाँ धैरी अपणी।
कैमा लगौ मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2
मेळा-थौळौ कभी कैकी नी जाणी,
मेळा-थौळौ कभी कैकी नी जाणी,
कन जांदी बांद तख लै-पैरी अपणी,
कैमा लगौ मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2
बहुत सुन्दर भाव कविता के। लेकिन
ReplyDeleteह्यूंद-बस्ग्याल मिल यखुलि.......क्या कुछ इस तरह नहीं लिखा जाना चाहिए उच्चारण की शुद्धता के लिए?
आभार बडोला जी, आपका कहना एकदम सही है किन्तु मैं समझता हूँ कि यह हमारे गढ़वाली भाषा कोष की सबसे बड़ी कमजोरी है कि इसकी एक निश्चित शब्दावली अभे तक तय नहीं हो पाई है। उदाहर्नाथ्र मिन और मिल दोनों ही शब्द हिंदी के शब्द मुझे का प्रतिनिधित्व करते है। किन्तु खेत्र के हिसाब से दोनों ही शब्दों को प्रयोग किया जाता है। हाँ आपकी इस बात से सहमत हूँ की बस्गाल की जगह बसिग्याल अथवा बस्ग्याल शब्द ज्यादा सही है।
Deleteहां आपने सही कहा। पर जब आपने गढ़वाली ब्लॉग लिखने का बीड़ा उठाया है तो आप निश्चित शब्दावली निर्मित कर उसका बारम्बार प्रयोग पुष्ट कर सकते हैं।
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