Pahaadi stuff !
Monday, January 28, 2013
बुस्कंत !
डांडी-कांठी छोडीक,
भैर भाग़
णै की अत्बताट मा,
कुजाणी कै डांडा, कै धैडा,
कै गदना का तीर कख छोडी,
मी यी भी बिसर्ग्युं
कि
मिन
यूं अपणा
हाथू की
लकीर
कख छोड़ी।
अब सैरी रात
आंख्यों-आंख्यों मा काटीक,
बस यी रंदू सोच्णु
कि मेरी ईं कपा
ळी
न,
मेरी तकदीर कख छोडी।।
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