ह्युन्द की चसी रात,
कूडै गी बग्ली,
चुल्ला का कोणा पर,
आटु गुन्ददी
हिलांदी छाति,
मी सणी याद करदु,
जब भी तेरी जिकुड़ी घबराली।
यख जन्नि मी तै बाडुली लगी अर,
वख तेरा चुल्ला आग भभराली।।
सुब्की-सुब्कीक तु मी
देंदी रै गाली,
पर भभ्रान्दि मुछयाली मुंद
तु पाणि न डाली।
खुटी पराज न लगै तु यकुलि खुदेकी,
चुचि, दिल न सुखै तू बाडुली बुथेकी,
अंधेरी कोण्यो बिछोणा बैठीक
काकर, संगाड जन्नि तू टपराली।
यख तन्नि मी तै बाडुली लगी अर,
वख तेरा चुल्ला आग भभराली।।
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