गौं जांदी दां,पिछ्ला साल,
जब मी पार कर्नू छौं
तेरा गौं का ढिसाळैकी
हरी-भरीं डांडी-पाख्यों तैं,
सड़की तिर्वाळ देखी छौ
इनु स्वाणु नजारु,
जगा-जगा माळु का लग्ला,
जन बुले भेंटणा हो
अंग्वाळ मारीकी कुलैं की फांख्यों तैं।
थौ खाणकू थोड़ी देर मी रुक्यूं ,
अर याद करी छौ मिन त्वे तैं,
मी बस यी सोच्णु रयूं कि
अगर तू भी होंदी एक लगुली माळु ,
अर मी भी होन्दु क्वी कुलैं कू डाळु!
अफुथै कुलैं कु डालु और मालु थै लगुली बणाकि लिखीं प्रेमिल प्रस्तुति।
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