Sunday, September 13, 2009

गढ्वाली कविता- बिसरीं याद !

दिल मे छुपी एक कसक यहां बयां कर रहा हूं, जिसकी बिडम्बना यह है कि आज की हमारी जो पढी-लिखी पीढी है, जिनके पास इन्टरनेट की सुविधा है, जिसे उनके समक्ष अगर प्रस्तुत करु भी तो वो उस मर्म को समझ नही पायेंगे । और जो उस दर्द को समझ सकते है, वे पढ नही सकते, उनके पास इन्टरनेट नही है ।
ऒंट पे लिये हुए, दिल की बात हम,
जागते रहेंगे और कितनी रात हम,
मुक्तसर सी बात है मुझे अपने गांव से प्यार है …………………..!



याद आन्दा उ पुराणा बचपन का दिन,
फ्योर खाण्कु तै तरसदु यु उल्यारु ज्यु,
पठोडा की दै-छांछ, सिन्द्री कु दूध,
अर कर्कुरु-मर्मुरु भ्योंपाणी कु घ्यु !

थाला-चिलेडी की घस्यारियों का सुरीला गीत,
वूं हरी-भरी मंजरा-मंसारी की धार मा,
कन्दूड तर्सदन फ्योर सुण्णकु तै बैठी की,
गोरु-बाखरा चरौंदी दा, कै धैडा-उढ्यार मा !

दादा कु हुक्का कु गुग्ड्याट, गंडासू कु तम्बाकु,
ठुंगार लगौण्कु रोटि मा, डांडा कु प्याज,
सुपाणा, चौरासू का उ तिल और दाल,
कखै खाण कंडाली कु लड्बुडु काफ़्लु आज !

बस्गालै की रौली-बौली, गाड-गद्रियों मा,
छोटी माछी-गड्यालु का पिछ्नै की झख,
ढुंगी –डल्यों का नीस बिट्नैकी,
कुत्डा-लिग्डा मेट्णैकी टक !

बरखदा दिन पर डिंडाला मा बैठीक,
अगेठी मा मुग्री-भट भुज्णका बाद,
गारी-सगोड्यों मा जगा-जगौं पसरयां,
मार्छा-पिंडालु का चर्चरा पैतूड कु स्वाद !

पुंगड्यों बिटिक चोरीक, काख्डी अर फूट,
अमेड्थ-भुजेला चोर्या, चौडीक कूडा,
स्कूल जांदी दा कीस्यों मा भौरीक,
गुड की गेन्दुडी अर कौणी का चूडा !

कुल्लन खाड खैन्डीक ढूढ्दा छा तैडू,
सगोड्यों का कोणों मा उ ढूढ्णु च्यु,
याद आन्दा उ बचपन का पुराणा दिन,
फ्योर खाण्कु तै तरसदु यु उल्यारु ज्यु !