Friday, March 29, 2013

गढ़वाली गजल - घुस्यू-खैयूं मुल्क मेरु !


जन्नि करारा कल्दार सरकाया,मेज का नीसा मा,
घूसखोर्या रांडा का ळोळन ,चट्ट धार्या कीसा मा।

चिफ्ळी ह्वेजांदी बाच तैकॆ, पाणि को सिंवाळु जन,
खडू उठीकी मुंड मलास्दू, मुखड़ी देख्दु शीशा मा।

इन्नि चल्दु सरकारी काम,अपणा सैरा ये देशकु,
क्वी कखि गुल्छर्रा उड़ान्दु, क्वी भूखा-तीसा मा।

वै की चल्दी,जाणु जु जाण-पछाण,सोर्स भिड़ाण,
क्वीत कुर्सी परैं चिप्क्यु,क्वी कुळै का लीसा मा।

यूं टकौं का पिछ्नै यख,कना ह्वेग्या मनखि 'परचेत',
घुस्यू-खैयूं मुल्क मेरु, संग्ती तिर्वाळ-ढीसा मा।

Saturday, March 23, 2013

मी कैमा लगौ खैरी अपणी,











कैमा लगौ मी खैरी अपणी,.......२ 


स्वामी जी छोडीकी परदेश गैन,
स्वामी जी छोडीकी परदेश गैन,
इन्नी बीती जिंदगी सैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी  खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

ससुराजी सूणीकी पट बोग मारदा,
ससुराजी सूणीकी पट बोग मारदा,
सासु जी कंदडू की बैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

दयूर,जिठाणा क्वी छूँ नी धरौंदा,
दयूर,जिठाणा क्वी छूँ नी धरौंदा,
नंण्द,जिठाण मनै की जैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

ह्यूद-बसिग्याळ सैरू यकुली काटी ,
ह्यूद-बसिग्या
 सैरू यकुली काटी ,
मिन मोण अछाणामाँ धैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

मेळा-थौळौ कभी कैकी नी जाणी,
मेळा-थौळौ 
कभी कैकी नी जाणी,
कन जांदी बांद तख लै-पैरी अपणी,
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2 

Friday, March 22, 2013

चल शांता, पंजाबी शांता.........!


आज एक भौत पुराणु गीत याद आण लग्यु, कभी मेरा पिताजी गुनगुनौदा छा ये गीत तै।  पुरू गीत त  याद नी  पर कुछ लाइन याद छाई और कुछ अप्णि त्रफां बिटिकी जोडीक यख प्रस्तुत करनू छौं। अगर आप लोगु तै कै तै  याद हो त कृपया बतौण कु कष्ट कर्यान ;    
चल शांता,  पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2
क्या लाणू, क्य खाणु छोरा, क्या तेरा गढ़वाल हे झम,
हे कंडाळी  कु साग हे शांता, झंगोरा कु भात हे झम, 
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2
आंगडी बणौलू शांता, नथूली सन्जाप हे झम,
हैन्सूळी  णौलू शांता, नाकै की बुलाक़ हे झम, 
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2
बानी-बानी का फूल शांता, ग्वीर्यालै-बुरांस हे  झम,
डाल्यों  मा कफ़ु बासदी, घुघूती, हिलांस हे  झम ,
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2 
नी आन्दू नि आन्दु छोरा, मी तेरा गढ़वाल हे झम   
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2      


Wednesday, March 20, 2013

घेटुडी !




विश्व गौरैय्या दिवस पर आज कविता की चार लाइन घेटुडी का नौ;  

हे घेटुडी, मन्ख्योंन भलु तेरु इन करी, 
ये जग मा तेरा नौ कु एक दिन करी।

हर्ची गे तू छाजा-डिंडाळी, चौक संग्ती बाट, 
अब नी सुणेन्दु सुबेर लीक तेरु च्युंच्याट। 

अब नी औंदी चौक-मुन्ड़ेली खाणौ खीर, 
अब नी दिखेंदा घोळ तेरा कूडा-सैतीर। 

निफ्ठाण करी हमुन तेरु बणीक तै बाज,   
चुची घेटुडी, जग मा तेरु दिन च आज।  

Wednesday, March 13, 2013

गढ़वाली लघु कथा- हाथ पसारनै आदत !




वैगा बुबा जी इलाका का भौत जाण्या-माण्या सिद्ध पंडत छा। इलाका का लोग त यख तक मांण्दा छा कि अगर ऊ कै तै वरदान या शाप दी द्यों त वू सच होन्दु छौ। किन्तु जन बोल्दन  कि  चिराग का तौला अंधेरु,,,,, वै  बात पंडाजी  दग्डी मा भी छै। ऊंगु एक नौन्याल छौ, जैकी एक गंदी आदत छै कि वू जै ना कैगा अग्नै माग्णौ तै हाथ फ़ैलै देन्दु छौ। पंडाजी बुड्या ह्वेगी छा, अब जब पंडाजी कु आखिरी टैम आई त नौन्यालन बोली कि बुबाजी तुमुन मेरा वास्ता त कमैक कुछ नी धर्युं, पर मैंन सूणी कि अगर तुम कै तै वरदान देन्दै  त वा सच निकुल्दु।  अगर इनी बात च त मैन बुढ़ेंन्दी द़ा आपैकी इथ्गा सेवा करी, मैं तै भी क्वी वरदान देन्दी जावा। बुढेजिन खिन्न मन सी वी तै बोली कि सुण उन त मैं त्वे तै भी देन्दु पर तेरी ज्वा  जै ना कैमू  हाथ पसारनै आदत च,  मैं वाँ सी खुश नि छौ। हाँ, अगर तू मैं तै यो वचन  द्यो कि तू कै भी मन्खी का अग्नै हाथ नी फैलौलु  त  मैं त्वे तैं भी एक              
वरदान दी देलू  पर याद रख कि मैं कै तै भी धन-दौलत सी सम्बंधित वरदान नी देंदु  किलैकि  मैं हमेशा मेहनतै कमाई  मा विश्वास रखदूं। अब आदत सी मजबूर नौन्यल सोच मा पडिगे कि बुड्ढयन या कनी शर्त रखियाली? न त ई मैं तै धन-दौलत पौण कु  वरदान देण चान्दु और लोगु मू हाथ न फैलौणौ कु वचन भी चान्दु।

थोड़ी देर सोच्ण का बाद एक आइडिया वैका खुरापाती दिमाग मा ऐ अर वैन झटपट बुड्ढया का खुट्टा पकड़ीन और बोल्ण लैगी कि बूबाजी मी आप तै वचन देन्दु कि मैं कै भी मन्खी का अग्नै हाथ नी पसार्लु  किन्तु आप भी मैं तै ई वरदान द्यावा कि मन्खियों का सिवाय मैं जैगा भी अग्नै  हाथ पसार्लु, वू एक बार मैं तै वा चीज जरूर दयो जू वैमु मौजूद रालु। बुड्याजीन सोची कि अगर यु मन्ख्यों का सिवाए और कैगा अगनै हाथ पसार्लू भी त वैमू क्य होण ये तै देणकु। गोरू-भैसौका अग्नै हाथ पसार्लू त वू मोळ अर गौंत ही दी सक्दन ये निकम्मा तै। बुढयाजिन फ़टाफ़ट बोली तथास्तु ! वांगा बाद बुढयाजिन प्राण त्याग दिनीन।

बुढयाजीकू  नौन्याल आजकल अरबपति च बण्यूं। बड़ा शैर मा रन्दु, विदेशी गाड्यों माँ घुम्दु। क्वी कामकाज नी करदु,  बस बुढयाजी सी वरदान पौण का बाद वू सिर्फ़ इथ्गा करदु कि कै भी बैंक का एटीएम का अग्नै जान्दु, हाथ पसार्दु  अर खळ करी नोटू की गड्डी वेका हाथ मा ऐ जान्दि।         

Wednesday, March 6, 2013

हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।


















अतिक्रमण करीक सड़की दबैन,  
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।       
घट्ट-जान्द्रा सुददी सूखा रिंङ्गैन, 
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।

ळ्या,बल्दु क्वी खुराक नी पिलैई,
हल्सुंग,नसुडा पर सेवाकर लगैई।
मेट्या-कुठ्या नाज मा जोळ चलैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।। 

ग्राम-सड़क योजना, मनरेगा खाई, 
उखड़ी पुङ्गडु काग्जु मा सेरु दिखाई।  
लूटी-लूटीक अपणा घौर बणैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।

चून्दा कूड़ो परै तुमुन चलैन स्कूल,  
गाड़ बिटिकी धैड़ा ल्हीगे कूल,
गोरु-बाछ्ला ओबरौं प्यासा अणैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।

किसानन त क्या बुतण अर लौंण,
गरीब की तुम काटणा छा धौण।
अपणा त दिल्ली,देरादोंण खड़ेन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।


जनता कु पैसा अप्णा बॊञ्ज दबाई,
दिन-दोफरा तुमुन यू मुल्क चबाई।
शरम-लाज सब्बी बेचीक खैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।         
    

Monday, March 4, 2013

पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।


क्वी सेरों का अर क्वी उखडी,
क्वी धैड़ो का, क्वी गंगाड्या,
सैणा क्वी क्वी डांडा-कांठा का,   
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।

क्वी बिडा क्वी ढीस्वा का, 
क्वी उकाळ अर क्वी उन्द्यार,
आडा-तिरछा, सीधा बाटा का, 
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।    


तंत मन्ख्यों की कै जात छन,
सब्बी एक्की जना ह्वे नी सक्दां   
चक्डैती क्वी त क्वी लाटा का, 
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।

कैगा दिंया-लिंयांन क्या होंदु,
दिन त सब्बुका छन कटेणां, 
क्वी खैरी त क्वी ठाठ-बाट का,
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।