Wednesday, August 7, 2013

वू दिनु भी क्य दिन छा गाफिल !



ऊं दिनु की गाफ़िल*, बिजां औंदी याद,
जब मेरा पोस्ट-ग्रेजुएट होण का बाद,
बीस-बाइस सालौ, ज्वान गबरु होन्दु छौं,
माँ की वीं बात परैं, बुकरा-बुकरी रोंदु छौं
कि कख रैन्दि जाँणू तू रोज तन झुम्दी,  
ततुरु दिन काट्दी तू सुद्दी लंडेरु घुम्दी।
हे निर्भैगी !
और नी करि सक्दि त मटरै बिण्दू,  
कखी पुङ्ग्डॉ मा क्वी पगारै चिण्दू,
कामै चीज त तिन क्वी भि नि सीखी,
क्य पाइ तिन तथा पढि-लिखीकी ??      

 गाफ़िल*, =बेपरवाह 

Wednesday, July 24, 2013

'चीड़-पिरूल' विद्युत और उत्तराखंड !

अलग राज्य का दर्जा प्राप्त हुए उत्तराखंड को लगभग तेरह साल हो चुके है। कौंग्रेस और बीजेपी ने यहाँ बारीबारी से राज किया। आज की तिथि तक कुल 2309 दिन उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार रही और 2330 दिन कॉग्रेस की। बीजेपी के चार मुख्यमंत्रियों क्रमश: सर्वश्री नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, बीसी खंडूरी  और रमेश पोखरियाल ने राज किया, जबकि कॉग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों सर्वश्री एन डी तिवारी और विजय बहुगुणा ने यह सौभाग्य प्राप्त किया। लेकिन इसे उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि एक अलग राज्य बनने पर जो उम्मीदे और अपेक्षाए उसने संजोई थी, उसपर कोई भी राजनीतिक दल खरा नहीं उतरा।

अक्सर हमारा तमाम तंत्र अपनी अक्षमता को छुपाने के लिए पर्याप्त धन और सुविधाओं के अभाव  का रोना रोता रहता है। लेकिन अगर इच्छाशक्ति हो, मन में अपने क्षेत्र, राज्य  और देश को सशक्त बनाने का जज्बा हो तो सीमित स्रोतों से सरकार को सालाना मिलने वाली आय भी राज्य के विकास में एक महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकती है। उत्तराखंड में चीड़ के जंगलों की बहुतायत है। उत्तराखंड वन विभाग के अनुमानों के अनुसार उत्तराखंड के  १२  जिलों के १७ वन प्रभागों के करीब ३.४३ लाख हेक्टीयर जमीन पर चीड के जंगल हैं जिनसे प्रतिवर्ष करीब २०. ६०  लाख टन पिरूल (Pine needles), बोले तो चीड की नुकीली पत्तियाँ और स्थानीय भाषा मे कहें तो 'पिल्टू' उत्पन्न होता है।

पहाडी जंगलों में इस पिरूल के भी अपने फायदे और नुकशान है। वसंत ऋतू  के आगमन पर चीड के पेड़ों की हरी नुकीली पत्तिया सूखने लगती है। मार्च  के आरम्भ से ये पेड़ों से झड़ने शुरू हो जाते है और यह क्रम जून-जुलाई  तक चलता रहता है। जहां एक और सड़ने के बाद यह पिरूल जंगल की वनस्पति के लिए आवश्यक खाद जुटाता है  और बरसात में पहाडी ढलानों पर पानी को रोकता है, वहीं दूसरीतरफ यह वन संपदा और जीव-जंतुओं का दुश्मन भी है। आग के लिए यह बारूद का काम करता है और एक बार अगर चीड-पिरूल ने आग पकड़ ली तो पूरे वन परदेश को ही जलाकर राख कर देता है। सूखे में यह फिसलन भरा होता है और गर्मी के दिनी में पहाडी ढलानों पर कई मानव और पशु जिन्दगियां लील लेता है। कुछ नासमझ सैलानी बेवजह और कुछ  स्थानीय  लोग बरसात के समय नई हरी घास प्राप्त करने के लिए जान-बूझकर इनमे आग लगा देते है।

लेकिन आज की इस तेजी से विकासोन्मुख दुनिया  में चीड-पिरूल हमारी बिजली  और ईंधन की जरूरतों को पूरा करने में एक अहम् रोल अदा कर रहा है/कर सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ बारह टन पिरूल एक पूरे परिवार के लिए सालभर का ईंधन(लकड़ी का कोयला), ८ MWh (प्रतिघंटा) यूनिट बिजली और एक आदमी के लिए सालभर का रोजगार उत्पन्न करता है। एक अनुमान के अनुसार अगर हर वन क्षेत्र के समीप  एक १०० कीलोवाट का चीड-पिरूल विद्युत संयत्र लगा दिया जाए और १०० प्रतिशत पिरूल उत्पादन का इस्तेमाल बिजली उत्पन्न करने हेतु किया जाए तो इससे उत्तराखंड में करीब ३ लाख पचास हजार कीलोवाट से चार लाख किलोवाट बिजली उत्पन्न  की जा सकती है। आपको मालूम होगा कि एक सामान्य घर में २ कीलोवाट का बिजली का मीटर पर्याप्त होता है, खासकर पहाडी इलाकों में जहां अक्सर पंखे/कूलर चलाने की जरुरत भी नहीं पड़ती। इसका तात्पर्य यह हुआ कि डेड से दो लाख घरों में बिजली सिर्फ पिरूल संयंत्र से ही पहुंचाई जा सकती है ।  इतने तो पूरे उत्तराखंड में घर ही नहीं है तो जाहिर सी बात है कि बाकी की बिजली ( बांधो से प्राप्त विधुत के अलावा) एनी राज्यों को निर्यात कर सकते है। हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा वो अलग, वन संपदा को आग से बचाया जा सक्रेगा, वो अलग।         
                                 
Firing Up Dreams
पिरूल गैसीकरण प्लांट जिसमे पिरूल को छोटे टुकड़ों में काटकर डाला जाता है और उत्पन्न ऊर्जा को विद्युत लाइनों में पम्प कर दिया जाता है 

अब आते है इन सयंत्रों की लागत और उसके लिए आवशयक वित्त स्रोतों पर। १०० से १२० कीलोवाट  के  एक चीड़ -पिरूल विद्युत संयत्र की लागत करीब ४ करोड़ रूपये है। और उत्तराखंड में उपलब्ध कच्चे माल की कुल उत्पादन क्षमता(३५०००० कीलोवाट अथवा ३५० मेघावाट) प्राप्त करने के लिए करीब ३००० ऐसे संयंत्रों की  जरुरत पड़ेगी। यानि कुल वित्त चाहिए करीब एक ख़रब डेड अरब रुपये। माना कि जून २०१३ में आई उत्तराखंड प्रलय के बाद परिस्थितियाँ भिन्न हो गई है, किंतु अगर हम इस देश के पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों पर भरोसा करें तो अकेले सन २०११ में करीब २ करोड़ ६० लाख यात्री उत्तराखंड भ्रमण के लिए पहुंचे थे। ज्यादा नहीं तो मान लीजिये कि प्रति यात्री ने वहाँ औसतन हजार रूपये खर्च किये, तो सीधा मतलब है कि  कुल पर्यटन विक्री या लेनदेन उस वर्ष में उत्तराखंड की करीब पौने तीन ख़रब  रुपये था। अब मान लीजिये कि मिनिमम  १० प्रतिशत राजस्व ( टैक्स इत्यादि) इस लेन-देन से सरकार को प्राप्त हुआ तो कुल हुआ पौने तीन अरब रूपये। तो अगर सरकार सिर्फ इसी धन को भी चीड-पिरूल विद्युत परियोजनाओं पर लगाए तो प्रतिवर्ष करीब ५०-५५ संयत्र लगा सकती है। वैसे भी एक अकेली बाँध परियोजना खरबों रुपये की बनती है। 

अफ़सोस कि इस दिशा में अभी तक कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया गया है। अवानी बायो एनर्जी नाम की एक प्राइवेट संस्था   इस दिशा में तमाम तकलीफों के बावजूद उत्तराखंड में हाथ-पैर मार रही है, प्रयास हालांकि उनका बहुत ही सराहनीय है। और शायद इस जुलाई अंत तक १२० कीलोवाट का उनका एक संयंत्र पिथोरागढ़ के त्रिपुरादेवी गाँव में काम करना शुरू भी कर देगा, मगर हमारी सरकारे कब जागेंगी, नहीं मालूम !  



छवि गूगल से साभार !             

Thursday, July 4, 2013

तू कैमा निबोली, त्वेकुणि म्यार सौं च।





आपणि जिकुडी मा बसायुं, इक त्य़ार नौ च,
पर तू  कैमा निबोली, त्वेकुणि  म्यार सौं च।

दिल त त्वे अपणु मिन, पैली ही दियाली छौ, 

जन्मपत्री भेजीं बाबा न, तन्त बतेरी जगौ च।

रौंत्याळा त बतेरा ह्वाला,गौं डांडी-काँठ्यो मा,
पर  सुपिनौ मा रिङ्ग्दु, सिर्फ तेरुहि  गौं  च।

जौं आँखियोंन ह्यूंद भी कभी, पाळु नी ढ़ोळी,
यादमा तेरी, वूं आँखियों मा, लग्दी सगौं च।

गौ-गौळा, बौण-पंदेरों हिटदू, लोग घूर्दी रैंदन,
पूछिनिहो जैन,त्व़े क्य ह्वाई, ईनि क्व़ा मौ च। 

होण लग्युं भारत निर्माण !









सोचि-सोचिकीतैं सूखिगेछा जब वीँका प्राण,  
निम्दैरी मा बैठीकि, बोड़ी लगीं छै बरणाण। 
कन निर्बिजु ह्वे बोला दूं ये निर्भागी सरगौकू, 
न बौण जाणकू रै, न डोखरी-पुंग्डियो धाण।      
चूचौं,कन अचांणचक या ळोळी प्रलय आई, 
छोड-पुंगडि गैन बौगी,अब हमुन क्य खाण।
मुन्ड़ेली मा बैठी बोड़ा हुक्का छौ गुगणाणू,
कूड़ा ढीस्वाळ एक हैलिकॉप्टर लगी उड़ाण। 
बोडन बोडी तै आँख मारी,हैलिकॉप्टर दिखै,
अर मुसकरैक बोली; हो रहा भारण निर्माण।।   


Saturday, June 29, 2013

हे धारी माता !

उपरोक्त चित्र एक काल्पनिक चित्र है, असली और नकली का समिश्रण ! 











उन्त हे देवी माँ, तेरी महिमा न्यारी माता, 
पर तेरी  पीड़ा  नी जाणि कैन धारी माता !
यूंन बोली,माताकु मंदीर हम इन बणौला, 
काटीकी पौड़,स्यूं मंदीर  हम ऐंच उठौला।  
क्य जाण्ण छौ इन उठाला यूं थान माता , 
रखी नी जाणी कैन भी तेरु  मान माता। 
विराट ज्यू च तेरु,त्व्ही सबुतै तारी माता, 
तेरी  पीड़ा  नी जाणि  कैन, हे धारी माता ! 


उत्तराखंड विपदा- हे स्वर्ग दिदा !


















उत्तराखंड त्रासदी मा जू  ज़िंदा यात्री लोग फंसी छा ,वू त  वख बिटिकी फौजी लोगुन लगभग निकाल ही यालिंन, परन्तु जू वख का स्थानीय  लोग छन  वून  कख जाण ? वूंकी  खैरी  कुछ यूं शब्दू मा ;
    

हे स्वर्ग दिदा,इ तिन क्य कैइ,तौं चौखम्बा बौंण,
बरखा-बौ  त  छक्कीक रुवेगी, हमुन  कै तै  रोण । स्वर्ग दिदा ....!
कूड़ी, डोखरी-पुङ्ग्डी बौगी, हे कुठारी बौगी दोंण,    
बरखा बौ त  छक्कीक रुवेगी, हमुन  कै तै  रोण । स्वर्ग दिदा ....!
खाँण क्या च, सेण कख, मुण्डभी कख छिपौण,
ज़रा तौळ देख, कुछ नी  रैंयुं,  टोटगी कर मोण,   
बरखा बौ त छक्कीक रुवेगी, हमुन  कै तै रोण । स्वर्ग दिदा ....!
रूड़ी का दग्ड़ा-दग्डी,इन कैरी तिन रग्डा-भग्डी,
अषाढ ल्हीगी सब्बी बगैकी, सौंण क्या बगौण,   
बरखा बौ त छक्कीक रुवेगी, हमुन  कै तै रोण ।  स्वर्ग दिदा ....!
बिज्वाड़ ज्व़ा बूती मिन,सेराकी पुङ्ग्डी बौगीन 
बीजौ  कू  निर्बीजू  ह्वाई, क्य बुतण, क्य ळौण,
बरखा बौ त छक्कीक रुवेगी, हमुन  कै तै रोण ।  स्वर्ग दिदा ....!
मैङ्गैकी च मार यख, ढंगैकी नी सरकार यख, 
दिनी भी छै जु मदद कैन, जुग्ति ह्वै  देरादोंण,     
बरखा बौ त छक्कीक रुवेगी, हमुन कै तै रोण ।  स्वर्ग दिदा ....!

Monday, June 17, 2013

बिजोक !


















उन त मी भी रजामंद छौ, अर वा भी रजामंद छै,

जथ्गा वीं मैं पसंद छौ, उथ्गी मी भी वा पसंद छै,

इन कु जाण्दु छौ कि सदानी अपणा मनै नी होंदी,

ब्यो नि ह्वाई,टैम पर पौंछ नि सक्यु, सड़क बंद छै। .

Friday, June 14, 2013

माळु- कुलैं




























गौं जांदी दां,पिछ्ला साल,
जब मी पार कर्नू  छौं 
तेरा गौं का ढिसाळैकी  
हरी-भरीं डांडी-पाख्यों तैं,
सड़की तिर्वाळ देखी छौ 
इनु स्वाणु नजारु,
जगा-जगा माळु का लग्ला,
जन बुले भेंटणा  हो 
अंग्वाळ मारीकी कुलैं की फांख्यों तैं। 

थौ खाणकू थोड़ी देर मी  रुक्यूं ,
अर याद करी छौ मिन त्वे तैं,
मी बस यी सोच्णु रयूं कि 
अगर तू भी होंदी एक लगुली माळु , 
अर  मी भी होन्दु क्वी कुलैं कू डाळु!

Wednesday, June 12, 2013

मन कू पुल्याट !


तू कागज़ होन्दी,
मी कुच्ची होन्दु,            कुच्ची=ब्रश
ज्यू-धीत भोरी
मी त्वे सजौन्दु।

ग्वीर्याळ-बांज 
 ड़ाळा छैल बैठी,
टाट मा त्वे बिछौंदु,  
चौक, छाजा
डिंडाळा बैठी, 
खाट मा त्वे बिठौंदु,
    
तेरी लंबी धौंपेली,
घुंघर्याळा बाळ,
छुंयाल्य़ा आँखी, 
स्वाणी मुखडी,
छबिलु लाणु
सजीलु गात,
नाक नथुली,
कंदुड़ू झुमका,
रंगबिरंगी चूडी हाथ।

बानी-बान्या 
साँचा बणैकी 
मन माफिक 
रंग चढ़ोन्दु,
किरमिची देह मा
कुच्ची कू प्राण होन्दु। 
तू कागज़ होन्दी,
मी कुच्ची होन्दु,          
ज्यू-धीत भोरी
मी त्वे सजौन्दु।।

Sunday, June 9, 2013

त्वैकु प्यारु दारु ह्वै !



हमारा  उत्तराखंड मा शराब आज एक बिकराळ  समस्या  बणिगेई। अब्भी हाळ ही मा शराब तस्करुन उत्तराखंड का बागेश्वर मा शराब विरोधी अभियान कू नेतृत्व करन वाली आशा कार्यकर्ता संगीता मलडा की ह्त्या करी देइ।    ये ही सम्बन्ध मा एक शराबी की माँ  दुखी मन सी अपणु खैरी  इन लगौणी च ;

न ब्वारीकु ह्वै, न म्यारू रै,
निर्भैगी त्वैकु प्यारु दारु ह्वै,
अपुण भी परलोक बिगाड़ी ,
और न तू कैकु सारु ह्वै। 

उन्त दुनियन भी खाई-प्याई,
पर इन अंगुल्तु  त्वी  व्हाई,    
क्वी दिन-बार इन नी जांदू, 
बिना घड्कैयां ही त्यारु ह्वै। 


 नौना सेंदा भूखी  रात,
चिरीं झुल्ली जनानी गात,
तू व्यान्सरी बक्षट ह्व़े जांदु,
मन्खी कनु  दुख्यारु  ह्वै।
   
खाणै फिकर  ना लाणै होश,
नौ धरौन्दु  सैरा  गौ-पड़ोस,
मुश्किल ह्वेगी मुख लुकाणु, 
कन अदक़पाळ्या मुंडारु ह्वै।      

हमुन  धैरी जीभ मा  डाम,
तिन लगाई  मवासी घाम,
ज्यू मारिकी  क्य पाई मिन,
रूप्या-टकों कु भी खारु  ह्वै।

  न ब्वारीकु ह्वै, न म्यारू रै,
निर्भैगी त्वैकु प्यारु दारु ह्वै।

Saturday, June 1, 2013

अपणी - अपणी दौरौकु, सब्बी हुश्यार छन।

स्याणु बणणै कोशिश,  कै दगड़ी मा नी कर्न,  
अपणी - अपणी दौरौकु,  सब्बी हुश्यार छन।
उन्नि मिल्दु वैतैं, करदू लुकार दगड़ा जू जन्न,
अपणी - अपणी दौरौकु,  सब्बी हुश्यार छन।
भिण्डी नी फ़ेंकण, अर भिंडी चुप भी नी रण,
बात उथ्गि बोल्ण, जथ्गा बोल्नौ गवै द्यो मन,
अपणी - अपणी दौरौकु,  सब्बी हुश्यार छन।

Tuesday, April 16, 2013

चुचौं, कन फीरिन ई रोट्टी तुम तैं।















कोदैकि रोंदी,ढबाड़ी रोंदी,
गथ भरीं वा मोटी रोंदी तुमतैं , 
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं, 
 ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।  

छछेड़ी रोंदी,झंगोरू रोंदु,
रोंदु कणखिलौं कु भात, 
पीजा-पास्ता पिछ्नै तुम, 
कन भूळे अपणी जात। 
जू खलौन्दी छै चैंसू,फाणु,
रोंदी वा सिलोटी तुमतै,
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं,  
ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।    

पिंडाळ्वा पैतुड अर भुज्जी, 
चर्बरु कंडाळ्यू कु साग, 
झोल्ळी,पळ्यो बिसरी गये,
सिर्फ शाही पनीर कु राग।
परेडू रोंदु,कमोळी रोंदी, 
रोंदी दैकी परोठी तुमतै,
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं,  
ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।    

बसिग्याळी गड्याल गाड़ का 
लरबरु माछौंकू झोळ,
तुमारु त सोडा,बियर जाणु 
या बटर चिकन रोळ।      
पीपलु मुकौ धारू रोंदु,
रोंदी पाणी छ्मोटी तुमतै ,
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं,  
ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।    

Friday, March 29, 2013

गढ़वाली गजल - घुस्यू-खैयूं मुल्क मेरु !


जन्नि करारा कल्दार सरकाया,मेज का नीसा मा,
घूसखोर्या रांडा का ळोळन ,चट्ट धार्या कीसा मा।

चिफ्ळी ह्वेजांदी बाच तैकॆ, पाणि को सिंवाळु जन,
खडू उठीकी मुंड मलास्दू, मुखड़ी देख्दु शीशा मा।

इन्नि चल्दु सरकारी काम,अपणा सैरा ये देशकु,
क्वी कखि गुल्छर्रा उड़ान्दु, क्वी भूखा-तीसा मा।

वै की चल्दी,जाणु जु जाण-पछाण,सोर्स भिड़ाण,
क्वीत कुर्सी परैं चिप्क्यु,क्वी कुळै का लीसा मा।

यूं टकौं का पिछ्नै यख,कना ह्वेग्या मनखि 'परचेत',
घुस्यू-खैयूं मुल्क मेरु, संग्ती तिर्वाळ-ढीसा मा।

Saturday, March 23, 2013

मी कैमा लगौ खैरी अपणी,











कैमा लगौ मी खैरी अपणी,.......२ 


स्वामी जी छोडीकी परदेश गैन,
स्वामी जी छोडीकी परदेश गैन,
इन्नी बीती जिंदगी सैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी  खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

ससुराजी सूणीकी पट बोग मारदा,
ससुराजी सूणीकी पट बोग मारदा,
सासु जी कंदडू की बैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

दयूर,जिठाणा क्वी छूँ नी धरौंदा,
दयूर,जिठाणा क्वी छूँ नी धरौंदा,
नंण्द,जिठाण मनै की जैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

ह्यूद-बसिग्याळ सैरू यकुली काटी ,
ह्यूद-बसिग्या
 सैरू यकुली काटी ,
मिन मोण अछाणामाँ धैरी अपणी।
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2

मेळा-थौळौ कभी कैकी नी जाणी,
मेळा-थौळौ 
कभी कैकी नी जाणी,
कन जांदी बांद तख लै-पैरी अपणी,
कैमा लगौ 
मी खैरी अपणी ,.,,,,,,,2 

Friday, March 22, 2013

चल शांता, पंजाबी शांता.........!


आज एक भौत पुराणु गीत याद आण लग्यु, कभी मेरा पिताजी गुनगुनौदा छा ये गीत तै।  पुरू गीत त  याद नी  पर कुछ लाइन याद छाई और कुछ अप्णि त्रफां बिटिकी जोडीक यख प्रस्तुत करनू छौं। अगर आप लोगु तै कै तै  याद हो त कृपया बतौण कु कष्ट कर्यान ;    
चल शांता,  पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2
क्या लाणू, क्य खाणु छोरा, क्या तेरा गढ़वाल हे झम,
हे कंडाळी  कु साग हे शांता, झंगोरा कु भात हे झम, 
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2
आंगडी बणौलू शांता, नथूली सन्जाप हे झम,
हैन्सूळी  णौलू शांता, नाकै की बुलाक़ हे झम, 
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2
बानी-बानी का फूल शांता, ग्वीर्यालै-बुरांस हे  झम,
डाल्यों  मा कफ़ु बासदी, घुघूती, हिलांस हे  झम ,
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2 
नी आन्दू नि आन्दु छोरा, मी तेरा गढ़वाल हे झम   
चल शांता पंजाबी शांता चल मेरा गढ़वाल हे झम,,,,,,,,,,,,,,2      


Wednesday, March 20, 2013

घेटुडी !




विश्व गौरैय्या दिवस पर आज कविता की चार लाइन घेटुडी का नौ;  

हे घेटुडी, मन्ख्योंन भलु तेरु इन करी, 
ये जग मा तेरा नौ कु एक दिन करी।

हर्ची गे तू छाजा-डिंडाळी, चौक संग्ती बाट, 
अब नी सुणेन्दु सुबेर लीक तेरु च्युंच्याट। 

अब नी औंदी चौक-मुन्ड़ेली खाणौ खीर, 
अब नी दिखेंदा घोळ तेरा कूडा-सैतीर। 

निफ्ठाण करी हमुन तेरु बणीक तै बाज,   
चुची घेटुडी, जग मा तेरु दिन च आज।  

Wednesday, March 13, 2013

गढ़वाली लघु कथा- हाथ पसारनै आदत !




वैगा बुबा जी इलाका का भौत जाण्या-माण्या सिद्ध पंडत छा। इलाका का लोग त यख तक मांण्दा छा कि अगर ऊ कै तै वरदान या शाप दी द्यों त वू सच होन्दु छौ। किन्तु जन बोल्दन  कि  चिराग का तौला अंधेरु,,,,, वै  बात पंडाजी  दग्डी मा भी छै। ऊंगु एक नौन्याल छौ, जैकी एक गंदी आदत छै कि वू जै ना कैगा अग्नै माग्णौ तै हाथ फ़ैलै देन्दु छौ। पंडाजी बुड्या ह्वेगी छा, अब जब पंडाजी कु आखिरी टैम आई त नौन्यालन बोली कि बुबाजी तुमुन मेरा वास्ता त कमैक कुछ नी धर्युं, पर मैंन सूणी कि अगर तुम कै तै वरदान देन्दै  त वा सच निकुल्दु।  अगर इनी बात च त मैन बुढ़ेंन्दी द़ा आपैकी इथ्गा सेवा करी, मैं तै भी क्वी वरदान देन्दी जावा। बुढेजिन खिन्न मन सी वी तै बोली कि सुण उन त मैं त्वे तै भी देन्दु पर तेरी ज्वा  जै ना कैमू  हाथ पसारनै आदत च,  मैं वाँ सी खुश नि छौ। हाँ, अगर तू मैं तै यो वचन  द्यो कि तू कै भी मन्खी का अग्नै हाथ नी फैलौलु  त  मैं त्वे तैं भी एक              
वरदान दी देलू  पर याद रख कि मैं कै तै भी धन-दौलत सी सम्बंधित वरदान नी देंदु  किलैकि  मैं हमेशा मेहनतै कमाई  मा विश्वास रखदूं। अब आदत सी मजबूर नौन्यल सोच मा पडिगे कि बुड्ढयन या कनी शर्त रखियाली? न त ई मैं तै धन-दौलत पौण कु  वरदान देण चान्दु और लोगु मू हाथ न फैलौणौ कु वचन भी चान्दु।

थोड़ी देर सोच्ण का बाद एक आइडिया वैका खुरापाती दिमाग मा ऐ अर वैन झटपट बुड्ढया का खुट्टा पकड़ीन और बोल्ण लैगी कि बूबाजी मी आप तै वचन देन्दु कि मैं कै भी मन्खी का अग्नै हाथ नी पसार्लु  किन्तु आप भी मैं तै ई वरदान द्यावा कि मन्खियों का सिवाय मैं जैगा भी अग्नै  हाथ पसार्लु, वू एक बार मैं तै वा चीज जरूर दयो जू वैमु मौजूद रालु। बुड्याजीन सोची कि अगर यु मन्ख्यों का सिवाए और कैगा अगनै हाथ पसार्लू भी त वैमू क्य होण ये तै देणकु। गोरू-भैसौका अग्नै हाथ पसार्लू त वू मोळ अर गौंत ही दी सक्दन ये निकम्मा तै। बुढयाजिन फ़टाफ़ट बोली तथास्तु ! वांगा बाद बुढयाजिन प्राण त्याग दिनीन।

बुढयाजीकू  नौन्याल आजकल अरबपति च बण्यूं। बड़ा शैर मा रन्दु, विदेशी गाड्यों माँ घुम्दु। क्वी कामकाज नी करदु,  बस बुढयाजी सी वरदान पौण का बाद वू सिर्फ़ इथ्गा करदु कि कै भी बैंक का एटीएम का अग्नै जान्दु, हाथ पसार्दु  अर खळ करी नोटू की गड्डी वेका हाथ मा ऐ जान्दि।         

Wednesday, March 6, 2013

हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।


















अतिक्रमण करीक सड़की दबैन,  
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।       
घट्ट-जान्द्रा सुददी सूखा रिंङ्गैन, 
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।

ळ्या,बल्दु क्वी खुराक नी पिलैई,
हल्सुंग,नसुडा पर सेवाकर लगैई।
मेट्या-कुठ्या नाज मा जोळ चलैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।। 

ग्राम-सड़क योजना, मनरेगा खाई, 
उखड़ी पुङ्गडु काग्जु मा सेरु दिखाई।  
लूटी-लूटीक अपणा घौर बणैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।

चून्दा कूड़ो परै तुमुन चलैन स्कूल,  
गाड़ बिटिकी धैड़ा ल्हीगे कूल,
गोरु-बाछ्ला ओबरौं प्यासा अणैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।

किसानन त क्या बुतण अर लौंण,
गरीब की तुम काटणा छा धौण।
अपणा त दिल्ली,देरादोंण खड़ेन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।


जनता कु पैसा अप्णा बॊञ्ज दबाई,
दिन-दोफरा तुमुन यू मुल्क चबाई।
शरम-लाज सब्बी बेचीक खैन,
हे अपणी मैड्या मण्सु तुमुन।।         
    

Monday, March 4, 2013

पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।


क्वी सेरों का अर क्वी उखडी,
क्वी धैड़ो का, क्वी गंगाड्या,
सैणा क्वी क्वी डांडा-कांठा का,   
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।

क्वी बिडा क्वी ढीस्वा का, 
क्वी उकाळ अर क्वी उन्द्यार,
आडा-तिरछा, सीधा बाटा का, 
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।    


तंत मन्ख्यों की कै जात छन,
सब्बी एक्की जना ह्वे नी सक्दां   
चक्डैती क्वी त क्वी लाटा का, 
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का।

कैगा दिंया-लिंयांन क्या होंदु,
दिन त सब्बुका छन कटेणां, 
क्वी खैरी त क्वी ठाठ-बाट का,
पर छाँ त सब्बी व़े माटा का। 

Wednesday, February 27, 2013

वू उत्तराखण्ड कु ह्वेनि सकदु,


नी बोली अपणी बाणी जैन,

अपणु गौं नी जाणि जैन,

वू उत्तराखण्ड कु ह्वेनि सकदु,

अपणा मनखि नी पछ्याणि जैन।



चौमास नी देखि अपणा ज्यूंद,

गग्डान्दु सर्ग बसिग्याळ-ह्यूंद,  

रौला-पाखों  ह्युं नी 
बर्खुदु देखि,

पे नी छोंयोंकु बौग्दु पाणि जैन। 




डोखरी-पुङ्ग्डियों मा नारी बांद, 

बौण घास-लाख्डु भारी लांद,

पंदेरा बंठा-गागर मुंडमा लेकि, 

क्वी नी देखि मुखड़ी स्वांणि जैन।



भट-बुख्णौ मा नी काटी रात,

राळी नी खाई काफ़्लि-भात,

कोदू, झंगोरु, चैंसू-फाणू,

पळ्य़ो, गौथ कू गथ्वाणी जैन।



बाटु  कभि कै नी दिनी ढीस्वाळ,


थाम्णौ कै नि गै बिड़ाळ,

फुंड धोळी सी सेखि दिखैन, 

अप्णु मुल्क नी गाणी-माणी जैन।   



मतलब परैं सैदा-भैदा देखि, 

सदानि अप्णु फैदा देखि, 

छ्वीं मिसौंदु कैकी नी धैरी, 

कभी अप्णी अर बिराणी जैन।


 
अप्णौ का हरवक्त गौळा काट्या,

बिराणौ का सदानि तौळा चाट्या,

फूट्या आखोँ भी देखण नी चै,

अपणा पाह्डू की होणी-खाणी जैन।


 

करी सुद्दि-मुद्दिकी  स्याणि जैन, 

बिसरैयाली सब्बि धाणि‍ जैन, 

वू उत्तराखण्ड कु ह्वेनि सकदु,

अपणा मनखि नी पछ्याणि जैन। 


Monday, February 18, 2013

ब्याळी अर भोळ !



बौण-सारी रयूं, 
तेरा ऐथर-पैथर 
धौण धारी रयूं।   
 पर मेरी क्वी भी बात 
नि धरै तिन, 
रामी बौराण,  माधों-रुक्मा,
राजुला मालूशाही,हीर-राँझा, 
त्वे मा 
क्य-क्य नी देखी छौ मिन !   
छजा-डिंडाळा बिटीक अंगेठी,
धुर्पैळा मकौ पक्यु अमेड्थ,
पंदेरा मुकै बंठा-गागर अर
बौंण-बीटों का ढुंगा-डळा,            
याद कर, 
क्य-क्य नी फरकैन  
तिन अपणा ये प्रेमी उन्दै ?
मेरू सैरु सुख-चैन छीनी, 
अर आखिर मा 
जब कुछ नी बची त 
तिन आँखा भी फरकै दीनी।     
खैर, जथ्गा चांदू छौं मी 
त्वे सणि ब्याळी,
आज भी वै उथ्गै च,
अर उथ्गी रालु सदानि भोळ,
मेरी रुआ-रोळ भाना, 
तेरी रॉक ऐंड रोळ !!

पुराणा जमानै की छोटी-छोटी चुलबुली छ्वी- भाग-2


ण्स

जन की आप लोग भी जाण्दै छा कि छुआछूत की महामारी हमारा देश मा सदियों बिटिक रै। बड़ी जाति का लोग छोटी जाति का लोगु तैं अपणा धारा परौ पाणी भी नी पेण देंदा छा। एकि दा द्वी छोटी जाति का लोग शामवक्त बौंण बिटिकी घास-लाख्डू लीक अपणा घौर छा जाणा। द्वियोंन बोंण डाळौ परै ऑला(आंवला) खै छा, ए वास्ता  काफ़ी प्यास लगी छै  द्वियों तै। रुम्क  पड़गी छै, त बीच रस्ता मा बड़ी  जाति का लोगु कू धारु पड्दू छौ, द्वियोंन आपस मा ख़ुसर-फुसर करी कि अब अन्ध्यारू ह्वैगि हम कैन नि देख्ण्याँ ऐ वास्ता, सुट्ट करी यूंगै धारा परौ पाणी पेन्दा आज। फ़टाफ़ट द्वियोंन अपणा घास-लाकुड़ू का भाऱा भोंया बिसैन और ऊँची जाति का लोगुका धारा परौ छकै तै पाणि पिनी। वांका बाद जब चलण लगींन त  एक हाका मा बोल्णु कि देखि तिन, ई अप्णी मैड्या मण्स बिट हम तै किलै नि पेण देंदन अपणा धारा परौ पाणि? दूसरन  बोली, हाँ यार, कथ्गा मिट्ठु च यूंका धारा कु पाणी।
असल माँ द्वियोंका ऑला (आंवला)  जू छा खंया।      

xxxxxxxxxxxxxxxxxxx 

बुढडीका नौना ब्वारी  उन्द बिटिकी गौं ऐन त बुढडीन बडा चाव सी कड़ी (पल्यो)-भात बणौणै सोची। अब जनि पकण लगि त पल्यो कडै पर जोर-जोर सी उछ्लन लगी। बुढडी बडबडाण लग्गि कि हम पर यत क्वी देवता कु  दोष ह्वेगी, य त नौना-ब्वारी दगडी रस्ता फुंड़ो क्वी मशाण ऐगी। वीन गौं माँ ढीढोरा पिटे दिनी। जब खूब हल्ला मच्गी तब नौनन पूछी कि माँ तिन पल्यो माँ क्य-क्य डाली छौ ?  बुढडीन बोळी मिन सिर्फ तेरु लयां पैकिट परै थोडा सा बेसण ड़ाळी छौ छांछ मा, बस। नौनु सूणिक हैंसण बैठिग़े। असल मा वू लोगुकु  दगड़ा मा एक निरमा कु पैकेट छौ लयूं, हेराँ, बेचारि बूढीड तै की पता कि निरमा क्य होन्दु?             

Sunday, February 17, 2013

पुराणा जमानै की छोटी-छोटी चुलबुली छ्वी- भाग 1



बुढडी क़ु नौनु गढ़वाल रैफल मा  छौ।  लैन्सिडॉन छाउनी मा नौना तै क्वाटर मिली त नौनु अपणी फेमली तै दगड़ा मा वख लीगी।  कुछ टैम का बाद वैन  माँ भी दगड़ा मा बुलै दिनी। वे टैम परै बिजली (लैट ) गढ़वाल मा ( लैन्सिडॉन  मा ) पैली-पैली दा ऐ छै। बुढडीन भी तबैरी देखी छै लैट। उबारी यु सिस्टम छौ कि लैट का स्विच अलग अलग कमरों मा  अलग-अलग नी  ह्वैकी सब्बी एक्की जगा परै  होंदा छा त जै कमरा मा बुढडी  सेंदी  छै, वै कमरै बत्ती  उ  लोग (नौना-ब्वारी)  सेंदी  द़ा अपणा कमरा बिटिकी स्विच दबैकि बन्द करी देंदा छा। अब एक दिन क्य ह्वेकी नौनै राते ड्यूटी छै और ब्वारी बत्ती बंद करन भूलीगे त रात मा बुढडी रात मा उठी अर ब्वारी तै अपणा कमरा मा बिटिकी धै लगै कि ब्वारी आज या लालटेन बंद किलै नि ह्वे ? ब्वारी तै भी मज़ाक  सूझी अर  ब्वारिन अपणा कमरा बिटिकी बोली " हे जी  फूक मारीक तुम्ही बंद कर द्या दू। अब सासु (बुढीड) चरपाई मा चढीक तै  लगी बल्ब परै फ़ूक मारन। बिजां देर तक फूक मारनी  रै पर बल्बन  किलै बुझण छौ। अब वा हाथ हिलै-हिलैकि बुझौंण लगी त हथेली बल्ब पर लगी और ठक  की आवाज ऐ और बल्ब चकनाचूर ह्वैकी भ्वा फर्श मा बिखिरी गे, और ब्वारीन  पोर बिटिकी पूछी, हे जी क्य ह्वे ?  बुढडीन बोली, होण क्यच बबा, लाल्टेन फुटिगी।          

Friday, February 15, 2013

मोग्या छोरी !


ब्याली छौ वेलेंटाइन डे !  
लोग प्रेम-दिवस भी बोल्दन 
ये तै चुची हे !   
त्वे मिलणकू जालु सोच्णु रैयूं, 
पर कै वजेसी  ऐ नी पैयूं, 
जाण्दु छौ त्वे गुस्सा होलू औणु,     
कि यू सुद्दी-मुद्दी बाना बणाणु,
सच्ची, ऐ  तेरी सौं,
झूठ नी बोल्णु छौ। 
तू जाण्दी  छै 
मैं झूठा कसम नि ख़ादू ,
मज़बूरी नी होंदी त 
मैं जरूर आंदु।    
तु जिकुड़ी न  झुरौ,
बैसाख आण लग्यु 
मैं जरूर औलु,
बिखोत का मेळा घुमालु,  
वै वक्त मी त्वे अप्णि बात बतालु,
तब जैकी त्वे  मी परैं  यकीं आलू।