Saturday, August 25, 2012

कांडा !


माया, धन-दौलत, सोहरत
घौर, जनानी, बाल-बच्चा 
क्य नि छौ,   
सब्भी धाणी छौ आफु मू !
पर उ दाना-सयाणोंन ठीकी बोली
कि जब ख़जेणा दिन औंदन त 
मवासी पर कांडा लग जान्दन !


एकी दगडी जब एगी धीत नी भरे,
पचास -पचास  रखिन नौकरी परैं !
और-त-और जनानी की भी नी धरे, 
इना कांडा लगींन एगी मवासी परैं !!

Saturday, August 18, 2012

बिरहणी कु मर्म !









लौकिं कुयेड़ी, 
बस्गाऴी बौछार,
ज्वानि का दिन चार, 
बाट्टू हेरी-हेरीक 
पळेखिगिन आँखी,
कब आलू तू 
द्वी मैनै की छुट्टी  
हे मेरा सिपै-सलार !  
निरभैगी, 
बतौ तू ज़रा 
इनु क्वी दिन-बार,
नि आन्दु हो जै दिन
मेरी जिकुड़ी मा,
तेरी याद,  त्व़े पर प्यार,
क्य बुध-भिप्प्यार,
क्य  छंचर-इतवार !!    



और अब हिन्दी सार :  बिरहन  अपने सैनिक पति को पत्र लिखकर कह रही है कि 
पहाड़ों में बरसात का मौसम चरम पर है,ऊपर से  ये जवानी चार दिन की है, तम्हारी  
राह तकते-तकते आँखे थक गई , दो महीने की  छुट्टी कब आ रहे हो !

हे निष्ठुर ! कोई ऐसा दिन-वार बताओ, क्या बुध-बृहस्पतिवार, क्या शनिवार- रविवार,  
जब तुम्हारी  याद और तुम पर मुझे  प्यार न आता हो !