Tuesday, May 26, 2009

गढ़वाली गीत- तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ

खडा-खडी छुयों माना मिस्यो ,
भै तौ खुटयों ना तन कुस्यो ,
तू सरुली हे छुंयाल घस्यारी
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!

डाली-पांखियों मा चौड़ी-चौड़ीक
डांडी-कांठियों मा रौडी-रौडीक,
लाणकु द्वी पूली घासकि,
कख-कख गै दौडी-दौडीक
कब तकै रिग्ली तू चारी दिसौ
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!


डांडी-कांठियों मा बर्फ च
यख पालू लर्क-तर्क च,
फुर-फुर्या बतों चल्णु
बल्देणु भी सर्ग च,
भै हाती-खुट्यों ना तन चस्यो
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!

न सौर कर लुकारी तू
सेट्टू की छै ब्वारी तू
घास की फिकर नी मी तै,
मीकू तै छै प्यारी तू
तै कमरी तैना तन पिसौ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!

Monday, May 25, 2009

गढ़वाली गीत -अब ऐजा सुहा !

भेंटी जा दू मी तै सुहा, मेरा गौं का तीर मा
कब तक लुकौं चिट्ठी तेरी, काकर-सैतीर मा,

खै याली मीन भौत सुहा, विरह कु यु जैर
अब नी रयेंदु सुहा मीसी, और तेरा बगैर,

तु ऐजा अब बारात लीकी, ऐंसू का मंगसीर मा
कब तक लुकौं चिट्ठी तेरी, काकर-सैतीर मा,

फुकणी च दिन रात मी, जवानी की या झौल
बाली-तरुणी उमर सुहा, फिर नी राली भोल,

लप्स्या नि राली भोल, अर जान ये शरीर मा
लुकौं कब तलक चिट्ठी तेरी काकर-सैतीर मा

त्वै परै अटकी च साँस, त्वी छै मेरी आश
सहारू छै तुही एक मेरु, करी ना निराश,

और ना अब फिकर डाल, ये मेरा धीर मा
कब तक लुकौं छिट्टी तेरी,काकर-सैतीर मा,

भेंटी जा दू मी तै सुहा, मेरा गौं का तीर मा
कब तक लुकौं छिट्टी तेरी,काकर-सैतीर मा,

Saturday, May 23, 2009

आणु छौ मी,!

रख धीरज मेरी जुगुनी, झट त्वैमु आलु मी,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

छोडी छाडीक आणु छौ मी, तु उदास ह्वाई ना,
जल्दी होली भेंट हमारी, तु या आस ख्वाई ना,

धर्यु क्या च यी नौकरी मा, त्वै मु ही रालु मी,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

डाण्डा मा मरोडी बणौला, कूडी एक छज्जादार,
मोरी ह्वाली, चौ-तर्फ़ी, चौडी डिन्डाली वार-पार,

बौन्ड-ओब्रि, मोर-संघाड, पर नी होलु तालु क्वी,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

गला की त्वै तै हैन्सुली लालु, अर कानु की मुर्खली,
गौडी राली चौक मा, बाच्छी गुठ्यारा बुर्कुली,

मेला मा छन्छेडी परोसी, पात्ति मा मालु की,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

पुन्गडी मा ग्यों-जौ बुतला, सगोडी मा रयांस,
बांज की लाखुडी मेट्ला, अर बिट्टा परौ घास,

ठन्डी-ठन्डी हवा खाला, घणा कुलैं का डालु की,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

झंगोरु कूठी उर्ख्यालामुंद, ग्यों पिसौला जान्द्री मा,
साट्टी धारी कुठारिमुन्द, जौ सुखौला मान्द्री मा,

पोथ्लियोन सैरु भर्यु रालु, ऐंच धुर्पालु भी,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

पाणी प्योला धारा कु, गौडी-बाच्छी कूली मा,
अर टन्न करी सेंयां राला, परालै की पूली मा,

द्वी तरैका फूल उगौला गोरू भी अर कालु भी,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

ये बिराणा देश की, भाड मा ग्यै या नौकरी,
अप्णा देश बैठीकी, करला अप्णी चाकरी,

कब तकै युंकी सूणा, द्वी कौडी का लाल्लु की,
लगदु नी च त्वै बिगर, यख यु मेरु बालु जी,

Friday, May 22, 2009

उत्तराखंड क्यों नाराज है ?

उत्तराखंड की बीजेपी सरकार खासकर वहाँ के मुख्यमंत्री इस सदमे में है कि आखिर उनसे ऐसी कौन सी गलती हो गयी कि जो बीजेपी को राज्य में इस तरह की हार का मुह देखना पडा ? सड़के बनवाई, डैम बनवाये, काम में इमानदारी भी दिखाई, फिर भी....? यह अवस्य एक पेचीदा विषय बन गया होगा उनके लिए !

सरसरी तौर पर यह बात सही है कि इसमें बीजेपी की आंतरिक कलह और कार्यकर्ता द्बारा मुख्यमंत्री की इमानदारी को ज्यादा तबज्जो न देना, हार का एक प्रमुख कारण है, लेकिन उससे भी बड़ा कारण है, जनता में असंतोष ! मुख्यमंत्री महोदय को यह समझना होगा कि सिर्फ कुछ सड़के और डैम बना लेने भर से स्थानीय जनता की आकांछाये पूरी नहीं हो जाती! इतना बड़ा टेहरी डैम बना, क्या उत्तराँचल के सभी घर उससे रोशन हो गए? नहीं ! उत्तराँचल सिर्फ देहरादून तक नहीं बसता बल्कि असली उत्तराँचल दूर-दराज के पहाडी इलाको में बसा है , जहां बिजली की समस्या है, पानी की समस्या है, स्कूल की समस्या है, रोजगार की समस्या है, चिकित्सा सुबिधावो की समस्या है, सड़क मार्ग नहीं है, इत्यादि इत्यादि ! और जो एक समस्या धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती जा रही है, वह है बेरोजगारी ! पहले लोग कम थे, जनसँख्या कम थी, इसलिए युवा वर्ग आसानी से सेना में भर्ती हो जाता था, अथवा मैदानों का रुख कर कही पर प्राइवेट में नौकरी कर अपना भरण पोषण कर लेता था ! लेकिन अब ज्यों-ज्यों जनसँख्या और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, भर्ती संस्थानों में भर्ष्टाचार बढ़ता जा रहा है , यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है, और आज सबसे बड़ी प्राथमिकता है इससे निपटना ! जिसके लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर अधिक से अधिक रोजगार के अवसर जुटाए जाएँ !

एक लेख में हिमांचल के बारे में पढ़ रहा था कि शुरूआती दौर में किस तरह वहाँ की सरकार ने हिमांचल को एक प्रमुख फल उत्पादक राज्य बनाने में मदद की ! उसी लेख को पढ़ कर वही विचार मेरे भी दिल में अपने उत्तराखंड के लिए आया ! अभी कुछ समय पहले अपनी जन्मभूमि जाने का एक और सुअवसर प्राप्त हुआ था, यह देखकर दिल को बड़ा दुख पहुँचा कि गावं के गावं खाली पड़े है और वो सीढ़ी नुमा खेतो की कतारे बंजर होकर जंगल में तब्दील हो चुकी है ! जहाँ इसका एक प्रमुख कारण यह है कि लोग रोजी-रोटी की तालाश और मूलभूत सुविधावो के अभाव में मैदानों को पलायन कर गये, या कर रहे है, वहीँ दूसरा प्रमुख कारण यह भी है कि सरकार की उदाशीनता की वजह से स्थानीय कृषक अपने खेतो से वाँछित उत्पादन नही प्राप्त कर पाते! धन की कमी और परम्परागत खेती से ही जूझते-जूझते किसान हिम्मत हार बैठता है और मैदानों की ओर पलायन कर जाता है!

आज जबकि कहने को हम उत्तराखंडीयो का अपना अलग राज्य है , हमें चाहिए कि एक नए सिरे से उत्तराखंड आन्दोलन फिर से छेडा जाए और हर स्तर पर सरकार को इस बात के लिए मजबूर करे कि वह एक निश्चित कार्यक्रम के तहत, एक विधेयक लाकर, उन सभी कृषि योग्य वंजर पड़ी या शुष्क जमीन को अगले १० वर्षो के लिए अधिग्रहण करे ! (इस निर्धारित अवधि के बाद सरकार को वह जमीन, जमीन मालिक को वापस लौटाने का भरोसा दिलाना होगा और उके लिए पुख्ता इंतजाम भी करने होंगे, क्योंकि यह भी सत्य है कि लोग जमीन कब्जाने के लिए कानूनों का सहारा ले, नाजायज फायदा उठाने से नहीं चूकते ) !उस अधिग्रहित की हुई जमीन पर उपयुक्तता के हिसाब से फलदार वृक्ष जैसे अखरोट, नींबू , सेब इत्यादि लगाने चाहिए और अगले चार-पाँच सालो तक जब तक कि पेड फल देने लायक नही हो जाते उसकी नियमित देखभाल करने के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए ! इसके अलावा अन्य तरह की नकदी फसलो का भी इनपर प्रयोग किया जाना चाहिए! पाँच साल बाद जब वृक्ष फल देना सुरु करे तो अगले ४-५ सालो की इन फसलो को स्वयं बेचकर सरकार उस रकम की काफ़ी हद तक भरपाई कर सकेगी जो उसने इन पर खर्च की है, साथ ही स्थानीय बेरोजगार युवा वर्ग को रोजगार भी मिलेगा ! और मैं समझता हूँ कि सरकार के पास अगर इच्छाशक्ति हो तो इस प्रकिर्या को लागु करने में कोई बहुत बड़ी दिक्कत उसके सामने आनी नही चाहिए !

किसानो को खेती के बीज की ख़राब गुणवत्ता के कारण नुकशान उठाना पड़ता है सरकार को किसानो को अच्छे बीज और खाद उपलब्ध कराने के लिए उसमें सुधार करने की आवश्यकता है, वे उचित और किफायती मूल्य पर किसानो को उनके अपने विपणन क्षेत्र में / दरवाजे पर ; गुणवत्ता के बीज, समय से और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए सार्वजनिक, सहकारी और वितरकों और डीलरों के निजी नेटवर्क के माध्यम से यह सुनिश्चित करे! साथ ही ग्राम स्तर पर किसानो की सहकारी समीतियाँ बनायी जाए और पानी के संरक्षण के लिए उचित व्यवस्था की जाये !

इस काम में मदद के लिए स्थानीय भूतपूर्ब सैनिको की एक वटालियन तैयार कर बहुत ही कम कीमत पर उनकी सेवाए ली जा सकती है ! और वे लोग भी इस नेक काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे ! अगर यह सम्भव हो पाया तो यह निश्चित है कि २०२० तक अपना उत्तराखंड एक समृद्ध राज्य होगा और देश का एक विकसित भूभाग !

Thursday, May 21, 2009

ऐजा लछुली !

छोडीक मी तै यकुली,
तू किलै गै मैत लछुली
लै-पैरीक भेज्दु त्वैतै,
तू किलै गै चादरी मा,

खाणु-पेणु सब छुटयूँ च,
त्वै बिगर यख लछुली
भूखन यख मोरी-मोरीक,
मी बैठ्यु छौ खादरी मा !

बथों ह्वै, अर् ढ़ान्डू पडी,
बरखा मा सभी बौगी गिन
गुठ्यारा मा जू रख्यां छा,
जौ सुखौणोंकु मान्द्री मा,

इकेक दाणी करी कुत्र-कुत्र,
मूसौं न वू खै यालिन
ढयाप्रा मा जू रख्यां छा,
ग्यों पिसौणोंकु जान्द्री मा !

ओबरा बिटीकी भूखन,
बांजू भैंसू भी लारांदु,
डिग्चा भी ख़मडॉण लग्यां,
कुकुर-बिरालु जाजरी मा

यख त चूची कै सी भी अब,
त्वै बिगर रयेन्दु नी च
बौडीक अब ऐजा चूची,
रंगली-पिंगली घाघरी मा !

Monday, May 18, 2009

तु नौनि छै कमालै की (कोरस गढ्वाली गीत)

नौनू:-- हे भाना, ज्वानि च उकालै की,सोला सतरा साले की
बाटु बिरडी जायि ना, तु नौनि छै कमालै की….
तु नौनि छै कमालै की… तु नौनि छै कमालै की

नौनी:-- यु बाटु सुहा ढाल कु, कुमाऊ अर गढवाल कु
उन्द रौडी जायि ना, तु नौनु छै कमाल कु….
तु नौनु छै कमाल कु…. तु नौनु छै कमाल कु

नौनू:-- मठु-मठु कै हिट चुची, मेसि-मेसि कै रख खुटी
कमरि लच्कि जालि त, हकीम बुलौला कख बटी….
हकीम बुलौला कख बिटी,..हकीम बुलौला कख बिटी

बात च य हालै की, वल्या-पल्या छालै की
बाटु बिरडी जायि ना, तु नौनि छै कमालै की….
तु नौनि छै कमालै की…तु नौनि छै कमालै की…

नौनी:-- देखि-देखि कै रख खुटा, चिफुलु च यु बाटु चुचा
खस्स रौडी जायि ना, ढुन्गौ मा यख का उच-ऊचा.
ढुन्गौ मा यख का उच-ऊचा. ढुन्गौ मा यख का उच-ऊचा

रौलु च यु पाल कु, बौण सीलु माल कु
उन्द रौडी जायि ना, तु नौनु छै कमाल कु..
तु नौनु छै कमाल कु… तु नौनु छै कमाल कु…

नौनू:-- ह्युं का ऊचा डान्डा छन, मुन्डा ऐंच घान्डा छन
यु बाटु मा जग-जगहो, किन्गोडा का कान्डा छन..
किन्गोडा का कान्डा छन… किन्गोडा का कान्डा छन

पाति काचा डालै की, तु फ़ान्कि छै ग्विरयाल की
बाटु बिरडी जायि ना तु नौनि छै कमालै की…
तु नौनि छै कमालै की.. तु नौनि छै कमालै की….

नौनी:-- होश आपणा ख्वाइ ना, तु ई उमर गवाइ ना
ज्वानि का ये रंग मा चुचा, रंग्मतु ह्वै जाइ ना…
तु रंग्मतु ह्वै जाइ ना… तु रंग्मतु ह्वै जाइ ना’

रख नाक अपण ख्वाल कु, कर काम इन धमाल कु
उन्द रौडी जायि ना, तु नौनु छै कमाल कु..
तु नौनु छै कमाल कु… तु नौनु छै कमाल कु….

नौनू:-- ज्वानि का ये धैडा मुंद, ओंश की न डाल बुन्द
भाना चुचि इ उमर मा, क्वासु यु प्राणि हुन्द..
कवासु यु प्राणि हुन्द..क्वासु यु प्राणि हुन्द

रख बात यीं जन्जाल की, तु गेडी पर रुमालै की
बाटु बिरडी जायि ना तु नौनि छै कमालै की…
तु नौनि छै कमालै की.. तु नौनि छै कमालै की.. !!

Wednesday, May 13, 2009

एक गढ़वाली गीत- तू ऐजा !

पढ़यु-लेख्युं नौनु छौ मी,
कुछ नी चैन्दु दैजा !
बस कूड़ी-भांडी खेल्ण कु,
तू मी दगडा मा ऐजा !!
लछी मी दगडा मा ऐजा ,
चूची मी दगडा मा ऐजा ,

घर कु काम मी करलू
तू फिक्र ना कर धाणी की !
नी सहेंदी पीढा मी सी,
ये तरसदा प्राणी की !!
कब तकै अकेलु रों मी ,
तू मी दगडी रैजा,
पढ़यु-लेख्युं नौनु छौ मी,
कुछ नी चैन्दु दैजा !
लछी मी दगडा मा ऐजा ,
चूची मी दगडा मा ऐजा ,

तेरी खुशी का बाना मी,
कुछ भी खालू खैरी !
बोंण-धाण मी देखलू तू,
घरमु रै लै-पैरी !!
गुड की गेंदुडी मी खालु
तू गुलगुला खैजा,
पढ़यु-लेख्युं नौनु छौ मी,
कुछ नी चैन्दु दैजा !
लछी मी दगडा मा ऐजा ,
चूची मी दगडा मा ऐजा ,

यखुली च प्राणी मेरु ,
दगडया एक चैन्दी !
ज्वानी की झौल चूची ,
सदानी इन्नी नी रैन्दी !!
भटकी गयुं ये बोंण मा
तु मी बाट्टू बतै जा,
पढ़यु-लेख्युं नौनु छौ मी,
कुछ नी चैन्दु दैजा !
बस तू कूड़ी-भांडी खेल्ण कु,
मी दगडा मा ऐजा !!
लछी मी दगडा मा ऐजा ,
चूची मी दगडा मा ऐजा

Tuesday, May 12, 2009

गढ़वाली नोक-झोंक !

नौनी:---- सूणियाली मिन तेरी चबड़-चबड़,
….चकडैत छोरा, भिन्डी ना बोल !
नौनू:-----आहा, जुबान सी कना फूल झड़ना,
…..लबरा छोरी तू गिचु ना खोल !! ,
नौनी: ----तू भिन्डी ना बोल..!.
नौनू: -----तू गिचु ना खोल..!

नौनी:---- चबड़-चबड त इन छै कर्नु
……..जन क्वी लोदगु छै चबाणी
नौनू:----- न खोल तै लबरा गिच्चा
…….कन सडी सी बास आंणि
नौनी: ----शट-अप् तू भिन्डी ना बोल
नौनू: ….. चुपकर तू गिचु ना खोल
नौनी:---- तू भिन्डी ना बोल..!.
नौनू:---- तू गिचु ना खोल..!

नौनी: ---- तेरा जना मेरा बाट्टू मा,
……अग्नै-पिछ्नै, बिजां मजनू घुम्दन
नौनू: ----- अरे तेरा जनौ तै बट्टा मा,
…… कुकुर भी नि सुन्ग्धन
नौनी:------ शट-अप् तू भिन्डी ना बोल
नौनू: ……. चुपकर तू गिचु ना खोल
नौनी: ----- तू भिन्डी ना बोल..!.
नौनू: ------ तू गिचु ना खोल..!

नौनी:------ किलै छै तू इन रिन्गुणु ,
….. क्या चांदी तू मी मुकै ?
नौनू: ----- त्वै सी मी तै कुछ नी चैन्दु,
….. तू नाजा मी सी मुख लुकै
नौनी: -----शट-अप् तू भिन्डी ना बोल
नौनू: ----- चुपकर तू गिचु ना खोल
नौनी:---- तू भिन्डी ना बोल..!.
नौनू: ----- तू गिचु ना खोल..!

Sunday, May 3, 2009

पैटौन्दि दां वा पाहडि बांद

देखी खडी बाट्टा मा, मिन वा पाह्डी बांद
गौं बिटीकि छुट्टी खैकी, ड्युटि परै आन्द,
डांडयों मा छांईकी छै, कुयेडी की धुन्द
सुहा छौ पैटण लग्युं तैंकू , जाणकु तै उन्द

पिंग्ली साडी गात परै, हर्यु स्काफ़ मुण्ड
चांदि की कर्दोड कमर, टल्खि कन्धा फुन्ड,
चम-चम चमकुदु छौ ,गला कु गुलबन्द
लट्कदी बिस्वार तैंकि, लंबी नाक मुंद

गौणौन छै स्वाणि मुख्डी, वींकि लक्दक
अथेड्ण्कु आईं छै वा, आददा बाटा तक,
आण कु बोली वै तै, फ्योर अग्ल्या ह्युंद
ढोल्न लगी आंखी छै, बडा-बडा बुन्द

पैटौन्दी सुहा देखी छै, मिन वा पाह्डी बांद
गौं बिटीकि छुट्टी खैकी, ड्युटि परै आन्द,
डांडयों मा छांई की छै, कुयेडी की धुन्द
तैंकू सुहा छौ पैटण लग्युं, जाणकु तै उन्द
-गोदियाल

Friday, May 1, 2009

जगह का महत्व और उसका हमारे स्वाभाव पर प्रभाव !

हालांकि मैं उत्तराँचल में रहा तो केवल ८-१० साल ही, मगर मेरे बचपन पर वहां की माटी की एक अमिट छाप है ! वहा की हर चीज़ को बहुत करीब से अवलोकित किया है मैंने! ऐसा ही एक इंटरेस्टिंग पहलु आपके समक्ष रख रहा हूँ ! हो सकता है की कुछ हद तक मेरा अवलोकन ग़लत भी हो, फिर भी उम्मीद है, रोचक लगेगा !

'सोइल टेस्टिंग'( मिट्टी का परीक्षण) शब्द तो आपने अक्सर सुना ही होगा! देश-विदेश में जब भी कोई बड़ा ढांचागत प्रोजेक्ट लॉन्च किया जाता है तो पहला काम होता है, सोइल टेस्टिंग रिपोर्ट ! एक ज़माना था जब हमारे गाँवों में, कोई मकान के लिए जमीन खरीदता था तो खरीदने से पहले उस जगह की थोडी सी माटी गाव के स्पेसिअलिस्ट ( वाक्या) के पास ले जाता था, जो सूंघ कर बताता था कि जमीन उसके लिए उपयोगी है अथवा नही ! इसी तरह के कुछ भिन्न भिन्न पहाडी जगहों से सम्बंधित रोचक तथ्य यहाँ रख रहा हूँ !

वैसे तो जब आप किसी मैदानी क्षेत्र के व्यक्ति से पहाडी लोगो के बारे में उसके खयालात जानो तो वो यही कहता है कि पहाडी लोग, ख़ासकर उत्तराखंड और हिमाचल के इमानदार , शरीफ और अच्छे नेचर के होते है ! मगर सभी जानते है कि भिन्न भिन्न तरह के इंसानों की सोच, उनके हाव-भाव, उनके चेहरे की बनावट और मुखमुद्रा भिन्न भिन्न होती है ! कभी सोचा की ऐसा क्यो होता है ? इंसान के इन हाव-भावों को कौन प्रभावित करता है ! बहुत से फैक्टर इसमे काम करते है, और जिनमे से एक है जमीनी फैक्टर ! तो मैं इसी जमीनी फैक्टर की बात पहाडो खासकर उत्तराँचल के सम्बन्ध में आपके समक्ष रख रहा हूँ !
जमीनी संरचना .........वहाँ के निवासी का औसत स्वाभाव

सूखी पहाडी चोटी पर रहे वाला ..........................चिडचिडा और अप्रिय बोलना
हरित पहाडी चोटी पर रहने वाला ........................ गुस्सैल मगर मीठा बोलना
बर्फीली चोटी ...................................... भावहीन चेहरा
सूखी घाटी.........................................चिडचिडा मगर डरपोक
हरित घाटी........................................ गुस्सैल मगर बहादुर
सिंचित भूमि वाली घाटी ...............................हंसमुख चेहरा, मीठा बोलने वाला
घाटी के बीच का मैदान.( जैस.देहरादून )................... मतलबी और मीठा बोलने वाला
(कहाँ आपकी जेब कटी,आपको पता ही न चले)
पहाडी के आगे का उष्म कटिबंधीय क्षेत्र ( जैसे भाबर,तराई )...... प्लेन मगर तल्खी बोलने वाला

अब आप सोचो आप इसमे से किस जगह के निवासी है और आपका स्वभाव मेरे उपरोक्त चार्ट से मेल खाता है अथवा नही !