Wednesday, June 24, 2009

दो पहाडो की आपसी अस्पृश्यता !

बात बहुत छोटी सी है, मगर है बहुत गहरी! यूँ तो सदियों से हमारा पूरा का पूरा भारत बर्ष ही छुआछूत की इस अजीबोगरीब बीमारी जैसे क्षेत्रवाद,जात-पात, ऊँच-नीच, रंग-भेद तथा गरीब-अमीर से गर्षित रहा है, लेकिन हिमालयी क्षेत्र में बसे दो पहाडो, गढ़वाल और कुमाऊ के मध्य की अस्पृश्यता एक भिन्न तरह की बीमारी है !यूँ तो भले ही कहने को ये दोनों पहाड़ एक ही है, और मिलकर उत्तराखंड राज्य बनाते है, किन्तु इनके बीच की दूरियां भी समय-समय पर मानसपटल पर साफ़ परिलक्षित होती रही है हम भले ही, गढ़वाली और कुमाउनी मिलकर एक ही किस्म के पहाडी, उत्तरांचली अथवा उत्तराखंडी होने का राग अलपते रहे, किन्तु सच्चाई यही है कि दोनों पहाड़ कहीं न कहीं एक दूसरे के प्रति एक अलग किस्म का भाव अपने दिल में पाले है !


आवादी और क्षेत्रफल के हिसाब से गढ़वाल क्षेत्र, कुमाऊ क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है, और जब उत्तराखंड राज्य की मांग उठी, इसी मुद्दे पर बहुत दिनों तक यह गहमा-गहमी और मतभेद बना रहा कि प्रस्तावित राज्य की राजधानी गढ़वाल में हो अथवा कुमाऊ में ! अभी हाल का मुद्दा रहे श्री भगत सिंह कोश्यारी और उनके चंद कुमाउनी विधायक मित्र, जिन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री जनरल खंडूरी को हटाने में कोई कसर नहीं छोडी और साथ ही कोश्यारी जी को जब अपने पक्ष में हवा बनती नहीं दिखी तो अपने एक सहयोगी श्री प्रकाश पन्त को इस आधार पर आगे किया कि पहले मुख्यमंत्री गढ़वाल का था, अब कुमाऊ का बनना चाहिए, लेकिन अफ़सोस कि उन्हें भाजपा के ३५ विधायको में से सिर्फ कुछ का ही समर्थन प्राप्त हुआ !

राजनीति में अवसरवादिता और उसका फायदा उठाना रणनीति का एक हिस्सा हो सकती है लेकिन इस आधार पर अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए गढ़वाल और कुमाऊ के नाम पर दो पहाडो के मद्य खाई खड़ी कर देना, मैं समझता हूँ एक निंदनीय कदम है ! और प्रत्येक उत्तरांचली को, चाहे वह कुमाऊ का हो अथवा गढ़वाल का, इसे समझना होगा और इस संकीर्ण दृष्टीकोण से बाहर निकलना होगा, तभी पूरे क्षेत्र का समग्र विकास संभव है!

6 comments:

  1. 'प्रत्येक पहाडी को इसे समझना होगा और इस संकीर्ण दृष्टीकोण से बाहर निकलना होगा, तभी सभी का समग्र विकास संभव है!'
    - आपकी पोस्ट से स्वयं संकीर्णता झलकती है.

    ReplyDelete
  2. यह संभव है पाण्डेय साहब कि मेरे बिचारो में भी संकीर्णता झलकती हो ! किन्तु आपकी बात से इतना अंदाजा तो मैंने भी लगा लिया कि आप कुमावानी है ! टिप्पणी के लिए शुक्रिया !!

    ReplyDelete
  3. आपकी बात में दम है मगर इसका उलट भी सच है. उन्नति के साथ संकीर्णता कम होती जाती है. वंचित वर्ग अपने आप ही शंकालु होता जाता है. उदात्त होने का सूत्र यही है कि विकास हो और उसका लाभ सबको मिले.

    ReplyDelete
  4. dekhiye .....main janam se pahadi hoon lekin ek baat jo maine mahsoos ki hai ki hum pahadi log apas me jitana bheede lekin koi maidaani dikh jaaye to hum use ghrina se dekhte hain khaastaur par rojgaar ke sambandh me (pahad me maidaniyon ne pahadiyon ke avsar chura liye hain!?)....to ek doosare se vaimansya to shayad hamesha rahega ....shukra hai ki in maidaaniyon ne aa kar kuchh samay ke liye ghadwaali aur kumaoni ka jhagada bhoolaya to .......aur haan main ab ek maidaani bahu bhi hoon :)

    ReplyDelete