Monday, October 5, 2009

न हाथीन स्वीली जाण, न बदरू दादन बजार आण !

अपना गढ़वाल की या एक पुराणी कहावत अचानक याद ऐगी, या कहावत भी कुछ वीं कहावत सी मिल्दी-जुल्दी च कि 'न बुबन ब्याण, न भुला होण !' ठीक उन्नी य कहावत भी च कि 'न हाथीन स्वीली जाण, न बदरू दादन बजार आण' !

ईं कहावत का पिछ्नै की कहानी या च कि रुद्रप्रयाग का ठीक पलिपार खड़ी चडाई चढ़न का बाद ऐंच डांडा माँ एक गों पड़दू स्वीली ! ये गौं माँ डिमरी लोग रंदन! बहुत पैली ये गौं माँ एक बदरू दादा रंदा छा ! काफी झाड्फूक और तंत्र-मन्त्र जाणदा छा ! उंगी ख्याति आखिर टीरी का राजा तक पौंछि और राजन वो तै अपणा दरवार माँ पहुंचण कू हुक्म सुणइ, जब अर्दली हुक्म लीग तै स्वीली पहुंची त बदरू दादन राजा तै रैबार भेजी कि जब तक मैं लेण कु हाथी नि आलू मैं दरवार माँ नि ऐ सक्दू ! अब समस्या इ खड़ी ह्वैगी कि आखिर वे खडा डांडा माँ हाथी पौछ्लू कन माँ ? त न कभी स्वीली हाथी गै सकी और न बदरू दादा बजार ऐ !

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