Thursday, April 22, 2010

ज्वानि

तैं स्वाणी मुखडी तैं तन उदंकार न कर ,
आंखियों का भौं तैं इना ढंगार न कर !
घास-लाखुडूकू तैं तू अन्धेरा मा जाली,
ब्यान्सिरी लेकी तै तब पंधेरा मा जाली !
अपणी ज्वानी तैं तू तन बेकार न कर ,
तैं स्वाणी मुखडी तैं तन उदंकार न कर !
बौण-घौर, कूड़ी-पुंगडी सब्बी यखी छुटि जाण,
तेरी तों लापस्योंन फिर केभी काम नि आण !
तों न्याणी गलोड्यों तै तन अंगार न कर,
तैं स्वाणी मुखडी तैं तन उदंकार न कर !

1 comment:

  1. तों न्याणी गलोड्यों तै तन अंगार न कर,
    तैं स्वाणी मुखडी तैं तन उदंकार न कर !

    बहुत समझने की कोशिश की ....कुछ ख़ास पल्ले नहीं पड़ा ....
    बस एक ही पंक्ति समझ आई ..

    अपणी ज्वानी तैं तू तन बेकार न कर ...

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