Sunday, May 9, 2010

गौ की याद !







गर्मियों की छुट्टियों मा,
गाड -गदन्यों फुण्ड
सुदि रन्दा छाँ ॠण्णाँ।

क्य वक्त छौ उ भी

जब उन्द शहरु  बिटिक,
अपणा गौं  जाण कु
दिन रन्दा छाँ  गिण्णाँ॥

अब त बस

दिल का जख्मु तै,
वक्त बेवक्त याद करीक

खुजाणां रैन्दा  ।

बचपन की वा

गौं की यादू  तै,
सेंदा-जाग्द आंखियों मा

रिंगाणां रैन्दा ॥

रूड्यौं का दिनु मा 

पाखा-धारु मा ,
कुऴैंकी  डालियों मा

छेंति-मेला रंदा छा तिण्णाँ।

क्य वक्त छौ उ भी

जब उन्द शहरु बिटिक,
गौं-पाहड जाण कु
दिन रन्दा छाँ गिण्णाँ॥


छोड-पुंग्डी जथ्गा छै
बांजा पडीं छन,
कूडी ज्वा छै

वा खन्द्वार ह्वैगि।

बेटी-ब्वारी, नौना-बाला

जू देश गै छा,
ऊँ  पर देशियों की अन्द्वार ऐगि॥

किन्गोडै की बोटिल्यों,

हिसरै की झाडियो मा,
हिसर-किन्गोड

रन्दा छा बिण्णाँ।

क्य वक्त छौ उ  भी

जब उन्द शहरु बिटिक,
अपणा गौं  जाण कु
दिन रन्दा छाँ गिण्णाँ॥

क्य रैंदा छाँ गांणाँ   

छाजा-निमदारि,
सैतीर पर घेन्टुडियों का घोल ।


सुबेर उठि-उठीक,

धुर्पाला-मुन्डेरि मा
छेऩ्टुळा,घुघुतियों का बोल॥


सेरा  की पुन्ग्डियों मा
रामलीला का दिनु,
ज्वान छोरा क्या
रन्दा छा भिण्णाँ।


क्य वक्त छौ उ भी
जब देशु-शहरु बिटिक,
गौं-पाहड जाण कु
दिन रन्दा छाँ गिण्णाँ ॥

डांडियों मा कुयेड़ी त 

अब भी लग्दी ह्वाली ,
धारा का पाणि की धार

अब भी बग्दी ह्वाली।

बथौन कुलैंकि डालि

अब भी हिल्दिन,
गौंमा पर कखी पर

मन्खि नि मिल्दिन॥

कख  कु उतरि ह्वालू 

गौ का जवान-स्याणा  सभी, 
देखि-देखीक
आंखि रन्दा छा मिण्णाँ।

क्य वक्त छौ उ भी

जब देशु-शहरु बिटीक,
अपणा गौं जाण कु
दिन रन्दा छां गिण्णाँ॥

उपरोक्त गढ़वाली कविता का सारांश यह है कि बहुत साल पहले जब गाँव हमारे भरे पूरे थे, वहाँ खूब चहल-पहल होती थी, तो अपनों के पास गर्मियों की छुट्टियां बिताने जाने के लिए बहुत पहले से दिन गिनने शुरू कर देते थे , लेकिन अब लोग रोजी रोटी की तलाश में उन ख़ूबसूरत सुदूर पहाडी गाँवों से पलायन कर गए है ! गाँव के गाँव खाली पड़े है, दिल बहुत होता  है अपने उस सुदूर अंचल की उन छांवो में जाने को, मगर वहाँ जायेंगे किसके पास ?

3 comments:

  1. गोंदियल साहब आपने तो दिल्ली की गर्मी के दिए जख्मों पर पहाड़ की ठण्ड वाली मरहम लगा दी । मैं गढ़वाली बोली समझ नहीं पता पर अपने बॉस श्री रमेश किमोला जी से आपकी कवितायेँ पढ़ा कर मतलब पूछ लेता हूँ। अब तो वो हर सुबह पूछते हैं पाण्डेय गोंदियल जी ने आज क्या लिखा?

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  2. बहुत-बहुत शुक्रिया दीप पांडे साहब, पढ़कर अच्छा लगा !

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  3. godiyaal ji.main aaj pehli bar blog main aaya hu or VICHHAR SHUNYA ji ke blog se saare achhe links ko follow kara..aapka ye gadwali lekh dekhkar bada man khush hua mai kumauni hu meri mata ji gadwali janti hain unhone mujhe iska matlab samjhaya..sach main..man uttrakhnad bhag raha hain.. dhanyawaad apke sunder lekh ke liye..

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