Tuesday, April 16, 2013

चुचौं, कन फीरिन ई रोट्टी तुम तैं।















कोदैकि रोंदी,ढबाड़ी रोंदी,
गथ भरीं वा मोटी रोंदी तुमतैं , 
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं, 
 ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।  

छछेड़ी रोंदी,झंगोरू रोंदु,
रोंदु कणखिलौं कु भात, 
पीजा-पास्ता पिछ्नै तुम, 
कन भूळे अपणी जात। 
जू खलौन्दी छै चैंसू,फाणु,
रोंदी वा सिलोटी तुमतै,
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं,  
ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।    

पिंडाळ्वा पैतुड अर भुज्जी, 
चर्बरु कंडाळ्यू कु साग, 
झोल्ळी,पळ्यो बिसरी गये,
सिर्फ शाही पनीर कु राग।
परेडू रोंदु,कमोळी रोंदी, 
रोंदी दैकी परोठी तुमतै,
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं,  
ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।    

बसिग्याळी गड्याल गाड़ का 
लरबरु माछौंकू झोळ,
तुमारु त सोडा,बियर जाणु 
या बटर चिकन रोळ।      
पीपलु मुकौ धारू रोंदु,
रोंदी पाणी छ्मोटी तुमतै ,
पहाड़ी भैजी, हे चुचौं,  
ई रु्वासी रोटी रोंदी तुमतैं।    

4 comments:

  1. भैया कुछ कुछ समझ आया पर सबकुछ नहीं आया पर लय में पढ़ डाला और समझने की कोशिश भी की पर काफी कुछ सर के ऊपर से निकल गया :( बस रोटी और मक्खन समझ आया और स्वाद भी |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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  2. पीपलु मकौ धारू रोंदु,(या धारु मकौ पीपलु रोंदु) कुछ गड़बड़ त नीचा। देख लिंयां।
    भौत परिचित भाव‍-विचारु को झोल पिलायाल आपाला। चूना कि रवटि मा सफेद घ्‍यू देखिक गिचम पाणी आ ग्‍या।

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    1. विकेश जी, गौर से मेरी कविता पढने के लिए आपका पुनश्च आभार !कोई गड़बड़ नही है :) पहले तो यही मैं भी लिखना चाहता था किन्तु फिर छ्मोटी (यानी की हथेलियों का चुल्लू बनाकर उससे पानी पीना और मुख धोना ) का उससे(पीपल से ) मेल नहीं बैठता इसलिए पीपल के पेड़ के पास का पानी का स्रोत ज्यादा उचित है।

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  3. ठीक है आपका विश्‍लेषण। आपके त्‍वरित प्रत्‍युत्‍तरों हेतु धन्‍यवाद।

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