Monday, October 18, 2010

मेरी दादी बोल्दी छै....

जनि करला,
तनि भरला,
दिन का बाद रात च,
नपी-तुलीं बात च,
पुराणि थेक्लीन भी पैली
घुंडी-क्वीन्यों मा ही दरकण !
मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
पिछ्नै ही सरकण !!

बिना हिलायाँ त
क्वी पत्ता भी नि हिल्दू,
भाग मा जैगा जथ्गा हो,
उथ्गा ही मिल्दू,
भली दुसरै की देखीकी
बल नि गाड्नी टर्कण !
मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
पिछ्नै ही सरकण !!

खुट्टा उथ्गा ही पसार्निंन,
आफुमू चादरी हो जतणी,
बाट्टा चल्दु कै मा भी
सुदी जुबान नी ख़तणी,
पठवा बांध्युं चैन्दु
जब घाघुरु लगु नरकंण !
मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
पिछ्नै ही सरकण !!

हिन्दी में इस गढ़वाली कविता का सार यह है कि जैसा करोगे वैसा भरोगे, इंसान को औकात से अधिक नहीं बढना चाहिए !

4 comments:

  1. सही बात है जिस के भाग में जितना होता है उतना ही मिलता है|

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  2. खुट्टा उथ्गा ही पसार्निंन,
    आफुमू चादरी हो जतणी,
    बाट्टा चल्दु कै मा भी
    सुदी जुबान नी ख़तणी,
    पठवा बांध्युं चैन्दु
    जब घाघुरु लगु नरकंण !
    मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
    अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
    पिछ्नै ही सरकण !!
    इस पहरे का अर्थ समझ नही आया। सार बहुत अच्छा है। हिन्दी मे भी अनुवाद दें तो और भी अच्छा हो। धन्यवाद।

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  3. मेरी दादी बोल्दी छै कि बबा,
    अग्नैगी जलीं मुछालिन भी
    पिछ्नै ही सरकण !!

    इसका मतलब क्या हुआ गोदियाल जी .....?
    'आग नें जली मछली पीछे की और सरकती है' या कुछ और .....?

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  4. @ मान्यवर गोदियाल जी ! आप को व दीगर सभी भाई बहनों को सादर प्रणाम ! आपको नए दिन की नई सुबह मुबारक हो ।
    आज नववर्ष के अवसर पर आपकी चिंता और चिंतन दोनों ही जायज़ हैं ।
    अपनी संस्कृति भूलने वालों को तो फिर भी माफ़ किया जा सकता है लेकिन जो लोग केंद्र में राष्ट्रीय संस्कृति वाहिनी सरकार लाना चाहते हैं वे भी आज अंग्रेजी नववर्ष का जश्न क्यों मना रहे हैं ?

    कृपया देखिये कि अब ये तत्व विदेशी सोच के प्रभाव में आकर बहन कहने पर भी पाबंदी लगा रहे हैं ।
    तीन अलग अलग जगहों पर मेरा एक विस्तृत लेख
    'देशभक्ति का दावा और उसकी हकीक़त'

    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/patriot.html

    http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/12/p

    http://blog-parliament.blogspot.com

    अंधड़ पर कमेंट न हो सका , सो यहां करना पड़ा । कविता अच्छी है।

    भाई अपना एग्रीगेटर का नाम तो बताओ !
    ज़रा देखें तो सही कौन सा एग्रीगेटर है ?

    सादर !

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