Friday, January 21, 2011

बिलैती बौ !

कुजाणी कख खेली दिदन इनु तगुडु दौ,

वीआईपी बणी घुमणी च गौंकी खतीं मौ

नांगी पाख्डियों लीक, गुठेरों नाचणी रांदी,

सुरीली बांद रंगीली, पिंगली बिलैती बौ !




द्वी घडी स्या त घर मू टिक नी पान्दी,

बिन खसम पुछ्या घुम्णौ चली जान्दी,

ना तैंतै ससुरा की डौर,न मदर-इन-लौ,

कुजाणी कख बीटीकि लाइ तै बिलैती बौ !




ढंगका त नी लगदा तैका क्वी भी लक्ष,

सुबेर ससुरातै छै पुछणी बाथरूम कखच,

उन त शरीफ इथ्गा च कि जन क्वी गौ,

पर कै ढगार फंसी बिचारी बिलैती बौ !




तभी बोली,बिना देख्या-भैयां ब्यो नी करन,

छोड़-कूड़ी भी देखण, सूरत पर नी मरन,

नतरै मेरी चार्युं पडला, कै बस्गाली रौ,

तब रो-मरू, या ज्यू भी करू बिलैती बौ !


उपरोक्त गढ़वाली कविता का हिन्दी सार यह है कि किसी ठेठ पहाडी गाँव में एक पढ़ा लिखा तेजतर्रार भाई एक अंग्रेज लडकी से शादीकर गाँव में ले आता है ! तो गाँव का ही एक दूसरा बंधू उस पे नुक्ताचीनी करता है कि इसने ऐसा तगड़ा दांव कहाँ खेला ? इसका परिवार तो आजकल गाँव में वी आई पी बन गया है ! उस अंग्रेज बहु को गाँव के रीतिरिवाज मालूम नहीं, साथ ही गाँव में बेसिक और बुनियादी सुविधाओं की कमी है, जिससे उसे कष्ट हो रहा है ! गाँव की दुनियादारी से बेखबर , वह सुबह के वक्त अपने ही सासर से पूछती है कि टोइलेट किधर है ? जबकी गाँव में तो ......

7 comments:

  1. कुछ समझ में आया ही नहीं कुछेक शब्दों के...तो क्या लिखूं.....
    अगर सम्भव हो तो क्या आप अनुवाद करेंगे...ताकि हम भी जान सकें.....कुछ मन हुआ पहाड़ी में लिखा पढ़ने को....

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  2. वंदना जी, आपका शुक्रिया , हिन्दी अनुवाद जोड़ दिया है !

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  3. गोदियाल जी आपके इस ब्लाग सहित दोनों ब्लाग BLOG WORLD .COM में जुङ गये हैं ।
    धन्यवाद

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  4. halanki pahari stuff kuchh kathin lagta hai,bavjud iske bhawarth samajhne main koi kathinai nahi hoti hai,
    achhi prastuti hetu abhaar,

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  5. बहुत सुन्दर और अच्छी लगी गडवाली कविता| धन्यवाद|

    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  6. शब्दार्थ - कुजाणी= न जाने , दिद न = भाई ने , तगुड= बड़ा , गों कि= गांव की, नांगी= नंगी, पंखडियो = हाथो, गुठेरों = गो शाला के बाहर गए को बांधने की जगह , बांद= सुंदर लड़की , पिंगली = पीली, बिलैत = विलायत ( विदेश) बौ= भाभी

    खसम = पति, पूछ्या= पूछना , स्या= वह , घुम्णों= घूमने, डौर= भय , कख बिटिकी= कहाँ से , लगदा = लगते हैं , तैं का = उसके लक्ष = लक्षण , पुछनी= पूछ रही है , कखच = कहाँ है , ढगार= बिल में , गुफा में , ब्यो = विवाह , छोड़ कुडी= जमीं जायदाद ,पडला = गिरोगे , बस्गाली= बरसाती, रौ= रौला, नदी , नाले आदि .



    भैजी इन ता बता की लै कख बाटी छाई यीं बौ थैं, भौत सुंदर होली .

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  7. हा-हा... खंकरियाल जी,

    सर्वप्रथम आपकू हार्दिक धन्यवाद करदू कि आपण बहुत बढ़िया ढंग सी शब्दार्थ करी मेरी कविता कू . उन त मैं भी सोच्दू रंदू छौ कि इन करू, मगर बात या च कि आज कू जू हमारू पहाडी युवा भैर एगी वैगु यां सी क्वी सरोकार नी, जू लोग रूचि रख्दन वूं तै लगभग समझ मा ऐ ही जांदी. ये वास्ता आलस्य करी देन्दु .

    हां , जख तक बौगू सवाल च त मिलिगी छाई दिल्ली फुन्ड :) :)

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