Monday, February 14, 2011

स्याणों की बात !

स्याणोंगु बोल्यु च कि
थोड़ा अक्ल भी दौड़ाण,
खाली नौ परै ही नि जाण !
सेठुगा लाटा-काला
बिजां छन गौं मा,
क्याच धरयुं नौ मा !
वा औंसी की रात छै,
हाल ही मकै बात छै !
मैगाई, बेरोजगारी कु जोर,
गौं मा दिख्यो घुस्गी चोर !
अकेली मौ छै मूडी पर,
धावा बोली सेठुगी कूड़ी पर !
मोर-संगाड बीटिंक घुस नि पाई,
त कुलाणा बिटिकी सेंध लगाईं !
कुछ नी मिली जब काकर-खोली,
तब जैक कोदा कि कुठार खंद्रोली !
धन-माया का नौ पर,
ऐका कोणा पर कित्लोंगा भेंड मिलिन,
अर नीस मुस्लेंड ही मुस्लेंड मिलिन!!

भावार्थ: सयाने, समझदार लोग कह गए कि अक्ल भी इस्तेमाल करनी चाहिए, सिर्फ नाम में कुछ नहीं रखा ! गाँव में ऐसे बहुत से नाम के सेठ मिल जायेंगे ! ऐसे ही एक आमावास्य की रात को गाँव में चोर घुस गया, निशाना बनाया सेठ जी के मकान से मशहूर एक अलग मकान को ! दरवाजे से नहीं घुस पाया तो मकान के पीछे से सेंध लगाईं ! इतनी म्हणत करने पर जब अन्दर घुसा तो कुछ नहीं मिला ! फिर आखिर में एक लकड़ी के बक्से को टटोला मगर वहा भी कुछ टूटे हुए वर्तनो के हत्थों और चूहों के मॉल के सिवाए कुछ नहीं मिला!

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