Monday, July 23, 2012

टकों का बाना..... !


भिंडी मेटणैं की दोंन,  अर कम मेट्यॉ कू सोग, 
टकों का बाना आज संग्ती, बौऴेण ल्ग्याँ लोग ! टकों का बाना..... !!  

लेणँकू रै न क्वी ईमान, देणकू तै खतीं जुबान,
लेंदी दां का सौ लारा-दारा, देंदी  दां कु टप बोग !   टकों का बाना..... !!  

छुंयों-छुंयोंमा देंदा टरकै, थूकमा यूंन पकोड़ी पकै,
लाँणकू नी थेक्ऴी गात, ख़ाणकू चैंदु विलैती भोग !  टकों का बाना..... !! 


चोर बणिगैन धन्ना सेठ, काटि-काटीक लुकारू पेट, 
धीत नी भरेंदी यूंकि, ऑर ख़ाणें रैंदी सदानी मोंग !    टकों का बाना..... !!    
    
अति दुसरै की दां  नि सम्झी. माँ यूंन माँ नि सम्झी,      
देवतों का ये मुल्क परै, नासूर बणीगे अब यू  रोग !  टकों का बाना..... !!



तथ्गा ना तुम बक्सा भरा, न भिंडी हबड़-दबड़ करा,   
वैन उथ्गा ही ख़ाण भुलों,  रैलू  जैकु जथ्गा  जोग !  टकों का बाना..... !!




  हिन्दी सार: अधिक पाने की लालसा और कम पाने का गम, पैसे के खातिर लोग पागल हो  गए है ! किसी से जब उधार लेना हो तो कोई ईमान नहीं ,  किसी को देने को कोई पक्की जुबान नहीं, जब खुद किसी से लेना हो तो मीठी-मीठी बाते और जब लौटाने की बात करो तो  फोन तक न उठाना ! सारे चोर-डाकू आज बड़े धन्ना सेठ बने बैठे है ! पेट नहीं भरता इनका , पैसे के खातिर ये माँ   को माँ नहीं समझते  ! लेकिन दोस्तों ! ये  भूल रहे है कि हरएक का जाना निश्चित है, एक लिमिट से ज्यादा बटोरकर भी क्या कऱेगे ?  
    

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