Saturday, July 7, 2012

वक्त की मार !

ऴोऴी या पिठैं भी क्य होंदी द्वारी दाथ्डै की धार,
कळ्यौ की कंडी मुदै, पैणैंकि कुट्यारी मा प्यार, 
कभी छूं औण परैं जैका नौकी वा खांदी छै खार,
बौंण-पंदेरौं वै गी भुली तैं अब स्ये पुछणी रैंन्दी,      
हेली, तेरा भैजी, क्वी चिट्ठी-पत्री,क्वी रंत-रैबार !! 

हिन्दी सार : सगाई, जिसे गढ़वाली में पिठैं कहते है, भी क्या मुई चीज होती है जो मिठाई की टोकरी के अन्दर मिठाई संग प्यार लेकर जाती है ! एक वक्त था जब वह उसका नाम तक सुनना नहीं चाहती थी और अब, जंगल- पनिहार जहां भी उसकी छोटी बहन उसे मिलती है तुरंत पूछती है, हे ! आजकल तेरे भाई की कोई चिट्ठी या सन्देश आया ?     

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