Wednesday, December 24, 2008

मर्कोल्या बाग्गी !

वैगा द्वि बच्चा अब बड़ा ह्वागी छा, ये वास्ता अच्छा स्कूल माँ पढान का खातिर बिजेसिंह चंडीगड़ बीटीक हफ्ता रोज़ की छुट्टी घौर आई छउ और घर-कुड़ी, छोड़-पुंगडी, गोरु-भैसा सबी धाणी बेचीं-बाचिकी अपणु परिवार साथ मा ल्हिगी छौ ! ये सारा किस्सा का दौरान एक चीज़ बिजेसिंह की रैगी छाई, जू नि बिकी , उ छाई वैगु तीन साल कु बाग्गी ! क्वी खरीदार न मिल्न पर ,जल्दी का चकरू मा चंडीगड़ जांदी दा विजेसिंह वैते गों मा ही खुलू छोड़ीगी छौ !

गौं कु पूर्ण सिंह जू ये ताक मा ही बैट्यु छयो, बाग्गी तै बांधी की अप्ना घौर लाय्गे ! छ्ही मैना भी नि व्हैयी छाया कि पड़ोस का गौं बीटी बाग्गी का खरीदार आई गिन, वू तै अठ्वाडी ( बलि) का वास्ता बाग्गी चैअणु छ्ह्यो ! पूर्ण सिंह न मौका अछू देखिकी ५०००/- रुपया मा बाग्गी कु सौदा करी दिनी ! बागी तै यी जाणी कि बडू दुःख होई कि लोग अप्ना स्वार्थ का खातिर क्या -क्या करदन ! जब तक ऊ पूर्णसिंह दगडी छौ , पूर्णसिंह वै तै एक बल्द दगडी जोतिकी पुंगडू मा खूब हौल भी लग्वांदु छौ, और आज जब वै थाई अच्छा पैसा मिलिन त पैसा का खातिर वैन वू बलि का वास्ता बेची दिनी !

अब अठ्वाड लिजाण कु दिन भी आई गयो ! अप्ना आस पास कु बातावरण देखिकी और ढोल दमाऊ की आवाज़ सुणीकी बाग्गी तै समझण मा देर नि लगी कि क्या हूण वालू च ! रास्ता मा लोग खूब शराब पेण लगया छाया और बाग्गी तै भी शराब पिलौंण कि तैयारी चलनी छाई ! वैन मौका देखिकी औजी का हाथ सी अप्ना गला की रस्सी छुडाई और कुत्राड मारी वख बीटी भागी गए ! बाग्गी भाग्दु-भाग्दु जंगल मा घनी झाडियों का बीच छिप गे ! लोग काफ़ी धुन्दन का बाद वख बीटी चली गिन !बाग्गी रात होण पर दूर का एक दूसरा गौं मा चली गे ! वख एक गरीब धरमु अप्ना परिवार दगडी रंदु छयो, वैन देखि कि बाग्गी कही बीटी भटकिकी आयूँ च, त वैन वू यी सोचिकी कि अगर क्वी वैगु खोजण वालू आई जालु त वैते लौटे देलु, अप्ना चौक मा बाँधी दिनी !

दिन बीतिन, बाग्गी भी ये नया घर मा काफ़ी खुश छायो, और नया घर कु मालिक भी ! किलाई कि ये गरीब परिवार तै भी छोटी-मोटी आमदनी कु एक नयु साधन मिली छयो , न सिर्फ़ वै गौं मा बल्कि पूरी पट्टी का भैंसों का बीच वी एक अकेलु बाग्गी छयो ! सब ठीक-ठाक चलन लग्य्नु छौ कि एक दिन कखी बीटी पूर्णसिंह आई पौंछि और वैन बाग्गी का बीच कपाल पर कु सफेद निशान का माध्यम से बाग्गी पछाण दिनी, अरे यु त मेरु बाग्गी छ , यख, कख बीटी आई ? बाग्गी का नया मालिकन भी सारी बात वै थाई साफ़ साफ़ बताई दिनी कि कै तरह सी वू ये घर मा आई ! पूर्णसिंह मन ही मन बहुत खुश होण लग्यु छयो कि एक बार त मैं यु ५००० हज़ार मा बेचीं भी याली छौ और अब फ्री-फंड मा मैं तै फेर मिली गी !

पूर्णसिंह बनावटी गुस्सा सी दिखौंदु बोली, अरे मैंन कख-कख नी ढूंडी यु , घास चरौण का वास्ता जंगल ल्हिगी छायो और यु गुम ह्व्या गे ! तबरी बीटी मैं त ये तें ढूंडन पर लग्यु छौ ! बाग्गी पूर्णसिंह कि झूटी बात सुणीक आग बबूला ह्वाई गे ,और वैन मन ही मन फैसला करी कि आज यत् वार, यत् पार ! चाय, तमाखू पेण का बाद जब पूर्णसिंह बाग्गी लिजाण कु तै वैगा कीला पर गई त बाग्गी न पूर्ण सिंह पुरी ताकत लग्यक कीला पर ही अटेर दिनी ! बड़ी मुश्किल करी जब घर वालौन वू छुडाई सके त तब तक वय्गु बाग्गी न कचूमर बणयाली छौ ! काफ़ी देर तक बेहोश रण का बाद जब वू होश मा आई त नया मालिकन पूर्ण सिंह तै पूछी, मैं छोड़ दयो ये तै तुमारा घौर तक ?

पूर्ण सिंह, न भै ! अपरी बै खान, तुमि रखा ये मर्कोल्या बाग्गी !!

Godiyal

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