Wednesday, December 24, 2008

गऴ्या बौड

लघु कथा -गऴ्या बौड ! 


सड़क वे गौं  का बीच बिटिकी  ह्वैकी जांदी,  ए  वास्ता गौं का भी द्वी नौ छन,  सड़कीगा  ढीस्वाळ माल्यु सेंद्री  अर सड़क बिड़ाळ तळ्यू सेंद्री। सड़क किलैकि ज्यादातर शुनसान ही रैन्दी, इ वास्ता माल्या, तळल्या खोळका सब्बि दाना स्याणा स्यामवक्त  गपशप मरण का वास्ता  सड़की मा ही चौपाल लगै  देंदन।      

वे दिन  भी  लोग इनि  बैठ्या  छा  तबारि वखमू एक  सफ़ेद रंग की लम्बी स्कोडा कार ऐकि तै रुकीं।   ड्राइवर की सीट कु  दरवाजु खुली त सूट-बूट मा  एक हट्टु- कट्ठु ज्वान भैर निकली।   कुछ गौ का लोग आपस मा खुसुर-बुसुर  करण  लैगिन;   
हे भै,  अंद्वार त एगी रग्घी  जनि च , पर  रग्घी  इनु धन्ना सेठ कख  बिटिकी बण  सक्दु ?  
अरे  भै , ह्वै सक्दु क्वी लाटरी-वॉटरी लगी हो हाथ। 

पिछली सीट मकै अटेजी  निकाली, कार बंद करीकी रग्घी जैम थोड़ा नजदीक ऐ  त  वैन जब  सबकु तै हाथ जोड़ीकी प्रणाम करी  त  लोग हक्का बक्का  रै गिनी। 

हे बेटाराम,   भै तू रग्घी छै ? एक स्याणा गौं वाळन  पूछी।  
हाँ चचा, मैं  रग्घी  छौँ।  
त्वेन त कमाल करियालि  यार,  इथ्गा  धन-दौलत ...... ?

और फिर  रग्घीन  जो कथा  वूँ  तै सुणै सूणिकी लोग एक्का-दुसराकु गिच्चु देखण  परै  ही लग्यां रैन। 

 "पेट पाळॄण का वास्ता मिन क्य-क्य नी खुटकर्म करीन। आखिर मा बल्दू की  जोड़ी लायूँ  त एक बौड़ गळ्या निकली गे।  मैं  जनि  हौळौ  जू (जुव्वा ) वैका  कंधा मा धारदु छौ वूं भ्वयाँ  पौड़ी जांदू छौ।  फ़्योर मै  वैगा मुख पर एक कालू छातू खोल्दु त बौड़ डॉर का मारा खडू ह्वै जांदू छौ।


फिर दिमाग मा एक आईडिया आई।    मिन बौड़ उट्ठाइ, एक जू ( जुव्वा) और एक  छातू कंधा मूंद लटगाई और बौड लीकी सीदू दिल्ली पौन्छि ग्यों । दूसरा दिनमैन एक भगवा वस्त्र और तिलक बज़ार बीटीक खरीदी, नहे-धुयेकी भगवा वस्त्र धारण करीक और बौड़ का कमर मा भी एक रंग-विरंगु कपड़ा डालीकी वैगा सिन्गु पर रंग लगायी कि आद्दा जू कु टुकडा और छत्रु उट्ठायिकी दिल्ली का एक बड़ा शिव मन्दिर का भैर खडू ह्वैग्यों। वै मंदिर मा जू भी भक्त औंदु, मैं वै तै संबोधित करीक तै बोल्दु, " हे भक्त, देखो, अगर तुम सच्चे मन से भगवान् के दर्शन करने जा रहे हो तो भोलेनाथ के इस वाहन की परमीसन लेके जावो ।" भक्त भी चकित ह्वैकी पूछ्दु कि भै परमीसन कन्मा मिल्ली ? त रग्घी बोल्दु " यह अभेद यंत्र ( जू(जुव्वा) कु आधा टुकडा की तरफ इशारा करीक ) मैं भोलेनाथ के इस वाहन के कंधे पर रखूँगा, अगर इसने घुटने टेक दिए तो समझो कि आप सच्चे मन से दर्शन के लिए जा रहे हो और भगवान् को आपका दर्शन करना मंज़ूर है, अगर नहीं तो यह घुटने नहीं टेकेगा" । वांगा बाद मैं वै जू का टुकडा तै जनि बौड़ का कन्धा मा धार्दु बौड़ भ्वयाँ पड़नक् तै, घुटना टेक देन्दु , मैं जू हटोंन्दू और भक्त तै बोल्दु "जाईये भोलेनाथ आपका इंतज़ार कर रहे है ।" वांगा बाद मैं जरा सी छत्रु खोल्दु और बौड़ फेर खडू ह्वै जांदू । भक्तगण भी गद-गद ह्वै तै जथा ह्वै सकदु बिना मेरा मांग्या ही भेंट बौड़ का चरणु  मा धारिकी खुसी- खुसी चली जांदा ।




धीरा-धीरा मैं और मेरु  बौड़, दिल्ली मा इतना प्रसिद्ध ह्वेगे  कि लोग मैं  पर और मेरा बौड़ पर नोट्टू की बरसात करण लगीन । 

रग्घी हाथ जोडिक,   ई बोलिकी वख बिटिकी निकली कि "सौब गळ्या बौड़ कि माया च " !









2 comments:

  1. ब्लोग जगत मे आपका स्वागत है। सुन्दर रचना। मेरे ब्लोग ्पर पधारे।

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