Monday, April 20, 2009

थोडा मेरि भी सोच

ये कलयुग मा ब्वै-बुबा ही ग्रेट छन त नौनौंगी त बात ही कुछ और च, जब बात हद सी अगनै बढ जान्दि त नौनु अप्ण बुबा तै क्य सलाह देन्दु ल्या सुणा;

पापी ज्यू पर लागि बबा, ज्वानि की खरोच
ब्योगा दिन औण लग्या, थोडा मेरि भी सोच
बानु तु बणौ न बबा, कि खुटटा पर च मोच
उठौ अपणु लाठु छतरु, थोडा मेरि भी सोच

ई भरीं ज्वानि मा भि मी, कब तकै लुकारि ताडु
देखि-देखि की लोगु सणि, कबरी तक टर्कणि गाडु
कैगु क्वी अणबिवायुं रैगि हो, गौंमा इनि क्वि मौ च
उठौ अपणु लाठु छतरु ,अर थोडा मेरि भी सोच

दोण दैजु लीक तै, ये घर मा भी ब्वारि आलि
जन मी पल्येणु छौ, तन स्या भी पल्येइ जालि
मी सी भी छोटा-छोटो कु, अग्ल्या मैना ब्यो च
उठौ अपणु लाठु छतरु अर, थोडा मेरि भी सोच

त्वै सी नि ह्वै सक्दु कुछ त, सुण ली मेरि बात
मैन आफि उठैकि लौण, ज्वी भि लग्लि हाथ
फिर न बोलि नाक कटेगि, दुश्मन सारु गौं च
उठौ अपणु लाठु छतरु अर, थोडा मेरि भी सोच
पापी ज्यु पर लागि बबा, ज्वानि की खरोच
ब्योगा दिन औण लग्या, थोडा मेरि भी सोच

-पी.सी.गोदियाल

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