Wednesday, March 13, 2013

गढ़वाली लघु कथा- हाथ पसारनै आदत !




वैगा बुबा जी इलाका का भौत जाण्या-माण्या सिद्ध पंडत छा। इलाका का लोग त यख तक मांण्दा छा कि अगर ऊ कै तै वरदान या शाप दी द्यों त वू सच होन्दु छौ। किन्तु जन बोल्दन  कि  चिराग का तौला अंधेरु,,,,, वै  बात पंडाजी  दग्डी मा भी छै। ऊंगु एक नौन्याल छौ, जैकी एक गंदी आदत छै कि वू जै ना कैगा अग्नै माग्णौ तै हाथ फ़ैलै देन्दु छौ। पंडाजी बुड्या ह्वेगी छा, अब जब पंडाजी कु आखिरी टैम आई त नौन्यालन बोली कि बुबाजी तुमुन मेरा वास्ता त कमैक कुछ नी धर्युं, पर मैंन सूणी कि अगर तुम कै तै वरदान देन्दै  त वा सच निकुल्दु।  अगर इनी बात च त मैन बुढ़ेंन्दी द़ा आपैकी इथ्गा सेवा करी, मैं तै भी क्वी वरदान देन्दी जावा। बुढेजिन खिन्न मन सी वी तै बोली कि सुण उन त मैं त्वे तै भी देन्दु पर तेरी ज्वा  जै ना कैमू  हाथ पसारनै आदत च,  मैं वाँ सी खुश नि छौ। हाँ, अगर तू मैं तै यो वचन  द्यो कि तू कै भी मन्खी का अग्नै हाथ नी फैलौलु  त  मैं त्वे तैं भी एक              
वरदान दी देलू  पर याद रख कि मैं कै तै भी धन-दौलत सी सम्बंधित वरदान नी देंदु  किलैकि  मैं हमेशा मेहनतै कमाई  मा विश्वास रखदूं। अब आदत सी मजबूर नौन्यल सोच मा पडिगे कि बुड्ढयन या कनी शर्त रखियाली? न त ई मैं तै धन-दौलत पौण कु  वरदान देण चान्दु और लोगु मू हाथ न फैलौणौ कु वचन भी चान्दु।

थोड़ी देर सोच्ण का बाद एक आइडिया वैका खुरापाती दिमाग मा ऐ अर वैन झटपट बुड्ढया का खुट्टा पकड़ीन और बोल्ण लैगी कि बूबाजी मी आप तै वचन देन्दु कि मैं कै भी मन्खी का अग्नै हाथ नी पसार्लु  किन्तु आप भी मैं तै ई वरदान द्यावा कि मन्खियों का सिवाय मैं जैगा भी अग्नै  हाथ पसार्लु, वू एक बार मैं तै वा चीज जरूर दयो जू वैमु मौजूद रालु। बुड्याजीन सोची कि अगर यु मन्ख्यों का सिवाए और कैगा अगनै हाथ पसार्लू भी त वैमू क्य होण ये तै देणकु। गोरू-भैसौका अग्नै हाथ पसार्लू त वू मोळ अर गौंत ही दी सक्दन ये निकम्मा तै। बुढयाजिन फ़टाफ़ट बोली तथास्तु ! वांगा बाद बुढयाजिन प्राण त्याग दिनीन।

बुढयाजीकू  नौन्याल आजकल अरबपति च बण्यूं। बड़ा शैर मा रन्दु, विदेशी गाड्यों माँ घुम्दु। क्वी कामकाज नी करदु,  बस बुढयाजी सी वरदान पौण का बाद वू सिर्फ़ इथ्गा करदु कि कै भी बैंक का एटीएम का अग्नै जान्दु, हाथ पसार्दु  अर खळ करी नोटू की गड्डी वेका हाथ मा ऐ जान्दि।         

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