Friday, April 24, 2009

बोडी की छबीस जनबरी !

२९ दिसम्बर, १९९५, वै टैम परैं श्रीनगर बिटिकी दिल्ली तक की उत्तरप्रदेश रोडवेज की सीधी बस सेवा छै।  तब मेरु नौनु तीन सालौ कु छौ, ये वास्ता तबारी हम तैं स्कूल-उस्कूल कु क्वी झंझट नी छौ।   परिवार तैं हरिद्वार अपना रिश्तेदारु का पास छोडिकी, मैं एक दिन का वास्ता श्रीनगर अपमान घौर गै छौं। लौट्दी दा मैन हरिद्वार तकौ तै सुबेर छै बजी वाली श्रीनगर-दिल्ली वाली रोडवेज की बस पकड़ी छै।  सात बजी का करीब गाडी देवप्रयाग का धोरा पौछि।   मैं कंडक्टर का बगल वाली सीट मा ही बैठ्युं छौ। जख्मु बिटिकी एक सड़क हिंदोलाखाल कु तै कटदी वख वै मोड़ परैं अचानक ड्राइवरन ब्रेक लगैन।   कंडक्टरन दरवाजू खोली त भैर बिटिकी एक साठ-पैसठ साल की वृद्धा एक कुट्यारु जनु थैलू पकडीक खड़ी छै, और फिर वीन पूछी; "बबा या गाडी दिल्ली होली जाणी" कंडक्टर का बोलण सी पैली मिन जबाब दिनी " हाँ बोड़ी जी , या दिल्ली वाली बस च, आपन कख जाण? " बोड़ीन इत्गा सूणी  अर वांका बाद फटाफट गाडी का भीतर औणकु तै अप्णि लाठी और खुट्टी अगनै सीड्यो मा बढ़ेंन और बोली क़ि बबा मैन दिल्ली जाण! गाडी मा चौडिकी वा बोड़ी मेरी पिछ्नै वाली सीट मा बैठीगे।  

गाडी अग्ने बढ़ी, और फिर एक-डेड घंटा का बाद व्यासी पौंछंण पर वखमु चा-पाणी पेण का वास्ता रुकिगे।  लगभग सब्बी  सवारी भैर उतरिगैन, मैं भी अपणी सीट मकै भैर उतर्न का वास्ता खडू होंयु और मैन पूछि; 
"बोड़ीजी आपन भी पेण चा-पाणी कुछ ?" 
बोड़ी:  न बबा मैं तै उल्टी होंदी !
मैं ई सूणिक तै मन ही मन हैरान छौं कि वा बोड़ी अकेला दिल्ली छै जाणी, ये वास्ता मेरा भीतर काफी कौतुहल छौ।  अत:  मैन फिर पूछी; 
"बोड़ी दिल्ली कै काम सी छा जाणा आप ?
बोड़ी: बाबा मेरु नौनु रंदु तख, मैं छबीसजनबरी देखणाकु तै छौ जाणू।  मैनाग रालू नौना मु अर् छबीसजनबरी देखीग घौर एई जालु। 
कै जगा रंदन आपका लड़का दिल्ली मा बोड़ी ? मैन फ्योर पूछी।
बोड़ी: जादा पता त मैं नी मालूम बबा, पर इन छौ नौनु बोल्णु कि वू विनोद नगर मा रन्दू।  
आप पैली भी रए कभी दिल्ली मा ? मैन फ्योर पूछी।
बोड़ी: न बबा, पैली दा ही छौ जाणू।  
आपन अपना नौना तैंत बतै याली होलू कि आप वख दिल्ली छा औंणा, ताकि उ वख बस अड्डा पर राला अयाँ, आपतै लेणकु ? 
बोड़ी: कुजाणी बबा, लेंणकु तै औंदु कि नि औंदु, पिछली दा जबारी छुट्टी ए छौ तबारी बोली छौ तैन कि माँ, इबारी दा त्वै दगडी क्वी दगडू होलू त छबीसजनबरी देखण कु दिल्ली ऐ जे।  अब दगडू त मैतै क्वी मिली नी इ वास्ता आफी लग्युं बाट्टा, अब जू भी होलू दिक्खे जालु, वैगु पता धार्यु च मेरु आफुमु, कै तै पूछि-जांचिकि पौंछी जालु।  

बोड़ी की इत्गा बात सुणण छै मिन कि मेरा पूरा शरीर मा एक कंपकपी सी दौडिगे।  अकेला कन मा जाली या बूढीड़ दिल्ली मा, मैं यूँ ख्यालू मा ही डुव्युं छौ कि तबारी बोड़ीन पूछि " बाबा तू कख रैंदी, तिन कख तक जाण ?
बोड़ी रैंदु त मैं भी दिल्ली छौं पर.....(बोडीन मेरी बात काटिकि बोली) हे बाबा,  फिरत मी तै भी दगडू हवैगी... मिन नोट करी कि बोड़ी की मुखडी पर एक चमक सी एगी छै।  मिन बोली, बोड़ी आपन मेरी पूरी बात नी सूंणी, मैंन भी जाण त दिल्ली च पर अभ्भि सीधू नी छौं मी वख जाणु।   मेरा अपना बच्चा छन छोड्या हरिद्वार रिश्तेदारुका पास।  ऊन ताख अभी एक हफ्ता रुकण, वांगा बाद औला हम दिल्ली।   मेरी बात सुणण का बाद बोड़ी कु चेहरा फिर मुर्झैगी छौ ! मेरु दिमाग भी तेजी सी दौडंण लग्यु छौ कि ईं बुढ़िडयो क्या किये जौ ? बोड़ी तै आफु दग्ड़ी  एक हफ्ता का वास्ता हरिद्वार ही रुकै देन्दु और जब हम जौला तब बढ़डी तै भी दगडा मा लिजैकि  बुढडी तै वींगा नौना मु छोडीक तै ए जाला।   परन्तु फ्यौर ख्य़ाल आई कि एक त मेरा बच्चा भी रिश्तादारुका यख छन और दगडा मा मैं यी बुढडी तै भी हफ्ता रोजकू तै वख ली जालु त वू लोग क्या सोचला।   

फिर मै बोडी तै सम्झ्हौण लग्यु कि बोडी आप इन अकेला न जा दिल्ली, वख अच्छा खासा लोग धोखा खै जान्दन, बिरिडी जान्दन, त आप त जनाना जात छा, आप यक्खी मु बिटीक घौर लौटि जा, मै बिठै देलु आपतै देप्रयागै गाडी मा।  बोडी: न बबा, मेरी त इबारीदा धारणा धारींच कि मैन छबीसजन्बरी देखीक ही औण।   अब मिन घौर बिटी अपरु लाठु-छतुरु उठै ही यालि त अब जु भी होलु, जाण दी ,फुन्ड फूक…!

मै बोडी दग्डी यु छुंयों मा ही रैग्यु और गाडि फिर चल्ण लगी छै ! मै सम्झीगि छौ कि बोडी तै सम्झौण कु क्वी फैदा नी च ! पर मेरा भितर एक उथल-पुथल सी मचीं छै, बार-बार कभी हरिद्वार सी दिल्ली तकौ पूरु रस्ता मेरी आखों मा ऐ जान्दु छौ, त कबारि दिल्ली कु आईएसबीटी वालु बस अड्डा, कभी दिल्ली की सड्कु कु ट्रेफिक, त कभी दिल्ली का लोग ! मैन आपरु मुन्ड घुमाइकि तै पूरि गाडी की सवारियो कु मुऐना करी, मेरि नजर कै इना आदमी तै ढूडणी छै, जु विस्वासपात्र हो और बोडी तै दिल्ली मा कुछ मदद कर सकु ! हरिद्वार उतर्न सी पैली मैन अपना दिल की तसल्ली का वास्ता द्वी इना लोग ढूँढली छा , जौन दिल्ली जाण छौ अर् आईएसबीटी उतर्न छौ ! मैन वू द्वी लोगु सी विनती कारीग तै यु पक्कू करियाली छौ की वू बोड़ी तै बस अड्डा का भैर बिटिकी ऑटो माँ बिठालीक तै ऑटो वाला तै ढंग सी सम्झै दये की वू बोड़ी तै वींगा नौना गा पता पर घर तक छोडू ! फिर मैन बोड़ी कु परिचय, वू द्वी लोगु सी करै और बोड़ी तै समझौण का बाद हरिद्वार उतरीग्यु !

एक हफ्ता हरिद्वार रुकण का बाद मैं दिल्ली आई ग्यों ! मेरा बच्चा एक हफ्ता और का वास्ता हरिद्वार ही रुकिगी छा, किलायिकि रेश्तेदारून जोर करी कि अगल्य हफ्ता वू लोगुन भी दिल्ली आण, एक व्यो मा शामिल होंण कु, ये वास्ता मेरा बच्चा भी वू दगडी मा आला! वू दिनु मै लक्ष्मीनगर मा विजय चौक पर किराया का मकान पर रंदु छायो! मैन हरिद्वार बिटीकी सुबेर की बस पकडी छाई ये वास्ता मै करीब एक बजी अपणा क्वाटर पर पौन्छिगी छौ ! मै मकान की दुसरी मंजिल पर रंदु छायु ,जख मा आधा छत पर द्वी कमरा किचन कु सेट छौ और आधा छत खाली छाई ! ठंडीयों का दिन और सफ़र की थकान होंण का वजह सी मै थोड़ी देर का वास्ता कमरा पर रजाई ओढिकी सेइ गयु ! अभी मै तै लेट्या थोडा ही देर ह्वै छाई कि अचानक छत मा लोगु की आवाज सुणीक मै उठी गयु ! भैर ऐकतै देखि त तैल्या माला पर रण वाला मकान मालिक का सभी बाल-बच्चा छत मा खडू ह्वैक, नीस विजय चौक पर लगी भीड़ कु तमासु देखणा छा! मैन भैर छत मा ऐकि तै मकान मालिकै बडा नौने की ब्वारि तै पूछि, क्या हुआ भाभी जी क्यो लगी है ये भीड ? उन जबाब दिनि, अरे वो नीचे चौक पे साडीयो की दुकान के आगे पता नही कहां से आकर, पांच-छै दिन से एक पागल टाइप की पहाडी बुढिया बैठी हुई थी, जो भी औटो वाला अन्दर गली मे आता था, वह उस पर जो भी उसके हाथ लगता था, फेंककर मारती थी ! अभी-अभी ये बच्चे बता रहे है कि उसे कोई मोटर साइकिल वाला टक्कर मारकर भाग गया ! ’एक पागल टाइप की पहाडी बुढिया’ वीं भाभी का वू शब्द मेरा कानो मा बजण लग्या छैया ! मैन बिना देरि करयां अपणा चप्पल पैरिन और बेड चौक पर पौंछि ग्यु ! भीड का घेरा का भीतर घुसीक मैन जु देखी त मेरा होश गुम ह्वैगैन ! सफ़ेद कुर्सयां बाल, मुख पर बिखर्या छा, भिन्डी दिन बिटीक भुखी-प्यासी, बिना न्हेयां-धुयेयां सडक का किनारा पर बेहोश पडी वा बोडी सचमुच कै पागल जनि ही दिखेण लगी छै ! मैन द्वी तीन लोग, जु मेरा अगनै खडा छा, वू अपना द्वी हाथुन एकितिरफ़ा करीन और बोडी का एकदम पास जैक तै घुन्डो का बल बैठीक अपना हाथ सी बोडी कु चेहरा हिलायि और जोर सी बोली.. बोडी.. बोडी… मगर बोडी पर क्वी सान-बाच नी छै ! मैन इथै-वुथै नजर दौडाइ, कुछ दूरी पर एक पाणी ठेलि वालु खडु छौ, मै दौडी वै मु गयु और एक गिलास पाणिकु लीक वापस बोडी का पास आयूं ! मैन पाणि का छींटा बोडी का मुख पर मारिन, पर क्वी फैदा नी ह्वाइ ! मैन बोडी की नश देखी त नस की धड्कन भी डुबी छाइ, लोग अगल-बगल खडु ह्वैक तमाशु देख्ण पर लग्यां छा ! तभी भीड मा बिटीकि एक दाना-सयाणा आदिमिन बोली ! बुड्डी है,नब्ज से नही चलेगा धड्कन का पता, छाती पे कान लगाकर चेक करो ! मैन उन्नि करि, बोडी की धड्कन च्लण लगि छै !

मैन पास ही खडा एक युवक सी बोली , भाई साहब, वो आगे नुक्कड पर रिक्शा खडा है जरा बुला लावोगे, उसको बोलना कि वालिया नर्सिंग होम तक चलना है ! वू लड्का दौडीक तै रिक्शा बुलेक लाइ, मिन बोडी अप्णा द्वी हाथुन उठाई और रिक्शा मा धारीक तै वै तै फटाफ़ट वालिया नर्सिंग होम चलण बोली ! टैम पर मिल्यां उपचार सी बोडी दुसरा दिन होश मा ऐगी छै ! डाक्टरन एक दिन और बोडी तै ऐडमिट रख्ण की सलाह दिनि ! जब बोडी ढंग सी होश मा ऐगी छाइ, तब मी तै अपण पास देखिकी बोडी का चेहरा पर थोडा रौनक ऐगी छै, जब मैन पूछि कि बोडि कन च अब तबियत ? वीन पूछी, बबा तु वी छै न, जु मी तै गाडि मा मिलि छायो ! मिन जबाब दिनि, हां बोडी मी वी छौ !
बोडी: मेरा बाबा, वै दिन मै तेरि बात माणि याल्दु त…. बोडी रोण लगी छै…. मैन बोडी तै धीरज बन्धै और सम्झै कि अब मै ऐ ग्यु, अब चिन्ता न कर…..!
बोडी: बबा, बिजा निठुर च या दिल्ली त, कै पर जरा भी दया-धर्म नी ! मै छै-सात दिन बिटीकि भूखु-प्यासु रयुं पर कैन एक गिलास पणियो कु भी नि दिनि……. ! बोडी का आखुं मा बिटी आसुं तरपर-तरपर झणण लयां छा !



मिन पूछी, बोडी जौ द्वी लोगु मा मैन गाडि मा बात करि छै, वून क्वी मदद नी करि ?
बोडी: बेटा, वून मी बस अड्डा बीटिकि आटु मा बिठै त यालि छौ पर वै औटु वालन धोखा दिनि बबा, दिल्ली पौंछ्दु-पौछ्दु रात हव्गि छै, वैन मै मु का जथा पैसा छा, लुट्यारु-कुट्यारु छौ, नौना कु पता छौ, उ कमीना सब लीगी बबा और मै तै चौराहा पर धोलिगे, बोडी फिर रोण लगी छै ! अब मेरी समझ मा सारि कहानी ऐगि छै कि किलै बोडी, औटो वालौ पर ढुन्गा फेक्दी छै ! मैन बोडी तै फिर ढाढस बन्धै कि बोडी अब तु बिल्कुल भी चिन्ता न कर, मै छौ त्वै दग्डी मा, मी त्वै घौर तक छोडीक आलु ! बोडीन फिर आंसु टप्कैन, मेरु मुन्ड मलासी और चुप रै, बोली कुछ नी !

शुक्र छौ भग्वानौ कि बोडी पर सिर्फ़ गुम चोट ही लगि छायि , हड्गी-मुड्गी सलामत छै ! नर्सिंग होम बिटीक डिस्चार्ज करीक तै मै बोडी तै अप्णा क्वाटर पर लायु त मकान मालिकुन पूछि, आप इनको जानते हो ? मैन बोली, हाँ, ये मेरी मां है, मुझे ढूढ्ते हुए यहां आई थी मगर मै दिल्ली से बाहर गया हुआ था, इसलिये वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी ! मेरि बात सुणीक वू लोग हक्का-बक्का ह्वैगी छा ! अब बोडी मेरा पिछ्नै लगी छै बर्ड-बर्ड करण कि बबा मेरा नौना कु अता-पता त अब मै मु छौ नी, पर तु ढून्डी सक्लु वै तै ? मिन बोडी तै सम्झै कि बोडी तू मेरा घर पर आराम सी बैठ, दिल्ली मा बिना पता कु या फिर टेलीफोन नम्बर का ढूढ्ण आसान काम नी, फिर भी मी कोशिश करलु ! वांगा बाद मी एक दिन शाम कु विनोद नगर गयु, कुछ लोग पूछी भी छन कि यख क्वी मनोज नाम कु पहाडी लड़का रंदु ? पर उतना बड़ा विनोदनगर मा यु काम इतनु आसान नी छयो ! बोडी का मेरा कमरा पर औण का द्वी दिन बाद हरिद्वार बिटीकी मेरा बच्चा भी एगी छा ! फिर मिन अप्णि घौरवाली दगडी मा बात करी कि ये शानिबारकू मैं बोडी तै वींगा गौ छोडीक एतवारकू वापस दिल्ली ऐई जालू ! मेरी घरवालीन मी सम्झायु कि यार या बोडी इतनी धारणा धारीक तै, इतना रिस्क लीक तै २६ जनवरी देखण कु आई छाई, त अब दस दिन बाद २६ जनवरी औंण लगी, ये वास्ता कम सी कम बोडी तै अब २६ जनबरी दिखैकी ही वापस भेजला! मैं तै भी अप्णि घरवाली की बात उचित लगी और फिर बोडी तै मनैकी तै, बोडी भी माणि गे !

इंडिया गेट पर छबीस जनबरी देखीकी तै बोडी भौत खुस छै, मानो चार धाम घूमिकी आई गे होली, वखि बीटिकी हम बोड़ी तै लक्ष्मीनारायण मंदिर भी लीगी छा ! वांका बाद मी तै, मेरे घरवाली तै और बच्चा तै वींन कई बार आशीर्वाद दिनी ! फिर एक दिन शनिबार सुबेर, मैं बोडी लीक वींगा गौ निकल पडयु! बोडी का गौ पौछुदु-पौछुदु हम तै रात पडी छाई ! अग्ल्या दिन सुबेर जब मैं वापस दिल्ली औंण कु पैट्यु त बोडी आखों मा आंसू लीक, मेरु थैलू पकडीक डेली पर खड़ी छै ! मैंन बोडी का चरण छुईंन त बोडी मी तै अप्णा सीना सी लगैक फिर रोंण लगी छै ! मिन जाणि- बूझिकी ध्यान बाटंण का वास्ता बोली, बोडी, मेरु झोला इथा गरु किले च लग्णु, आपन क्या भौरी यख पर? बोडी न मेरु मुंड मलासीक बोली, कुछ नी बाबा, मै क्या दी सकदु त्वाई तै ? मैंन बोली, आपकू आशीर्वाद ही हमारा वास्ता काफी च, और फिर मैं निकल पडयु वख बटीक ! बोडी काफी दूर तक भैर छाजा मा बिटीक मी तै जांदू देखणी राइ !

दिल्ली पौन्छिकी जब मेरी घरवालीन मेरु बैग खोली, त मेरा आँखा नम ह्वैगी छा देखीग तै, बोडीन भी उन्नी कुट्यारी बांधीक छै रखी बैग परै, जन कभी दिल्ली औंदी दा, मी तै मेरी माँ देंदी छै बांधीक तै ! डब्बा पर एक माणि घी की, एक कूटयारी पर गौथ, एक्का पर झंग्र्याल और थोडा सा जख्या...................... !




















2 comments:

  1. बहुत अच्छु काम करी भाईजी आपन, आँसू आइ गेन मैते।
    भगवान आपकू भलु करलु।

    ReplyDelete