Thursday, February 17, 2011

बसंत !

रै-लय्या का फूल भी
यु बथौन्दन तंत ,
डांडी-कान्ठ्यों मा
अब ऐगी बसंत,
पर तब लगदु कि हां,
ह्युंद ख़त्म ह्वेगी,
डाली-बोट्ल्यों मा,
पिन्ग्लू फुल्यार ऐगी,
जब ब्यान्स्री उठीक !
घर्र-घर्र कखी परेडै की
रोंण की आवाज
कंदुडु मा पड्दी,
गदरा पार बिटीक !!

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