Friday, March 29, 2013

गढ़वाली गजल - घुस्यू-खैयूं मुल्क मेरु !


जन्नि करारा कल्दार सरकाया,मेज का नीसा मा,
घूसखोर्या रांडा का ळोळन ,चट्ट धार्या कीसा मा।

चिफ्ळी ह्वेजांदी बाच तैकॆ, पाणि को सिंवाळु जन,
खडू उठीकी मुंड मलास्दू, मुखड़ी देख्दु शीशा मा।

इन्नि चल्दु सरकारी काम,अपणा सैरा ये देशकु,
क्वी कखि गुल्छर्रा उड़ान्दु, क्वी भूखा-तीसा मा।

वै की चल्दी,जाणु जु जाण-पछाण,सोर्स भिड़ाण,
क्वीत कुर्सी परैं चिप्क्यु,क्वी कुळै का लीसा मा।

यूं टकौं का पिछ्नै यख,कना ह्वेग्या मनखि 'परचेत',
घुस्यू-खैयूं मुल्क मेरु, संग्ती तिर्वाळ-ढीसा मा।

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