Sunday, February 17, 2013

पुराणा जमानै की छोटी-छोटी चुलबुली छ्वी- भाग 1



बुढडी क़ु नौनु गढ़वाल रैफल मा  छौ।  लैन्सिडॉन छाउनी मा नौना तै क्वाटर मिली त नौनु अपणी फेमली तै दगड़ा मा वख लीगी।  कुछ टैम का बाद वैन  माँ भी दगड़ा मा बुलै दिनी। वे टैम परै बिजली (लैट ) गढ़वाल मा ( लैन्सिडॉन  मा ) पैली-पैली दा ऐ छै। बुढडीन भी तबैरी देखी छै लैट। उबारी यु सिस्टम छौ कि लैट का स्विच अलग अलग कमरों मा  अलग-अलग नी  ह्वैकी सब्बी एक्की जगा परै  होंदा छा त जै कमरा मा बुढडी  सेंदी  छै, वै कमरै बत्ती  उ  लोग (नौना-ब्वारी)  सेंदी  द़ा अपणा कमरा बिटिकी स्विच दबैकि बन्द करी देंदा छा। अब एक दिन क्य ह्वेकी नौनै राते ड्यूटी छै और ब्वारी बत्ती बंद करन भूलीगे त रात मा बुढडी रात मा उठी अर ब्वारी तै अपणा कमरा मा बिटिकी धै लगै कि ब्वारी आज या लालटेन बंद किलै नि ह्वे ? ब्वारी तै भी मज़ाक  सूझी अर  ब्वारिन अपणा कमरा बिटिकी बोली " हे जी  फूक मारीक तुम्ही बंद कर द्या दू। अब सासु (बुढीड) चरपाई मा चढीक तै  लगी बल्ब परै फ़ूक मारन। बिजां देर तक फूक मारनी  रै पर बल्बन  किलै बुझण छौ। अब वा हाथ हिलै-हिलैकि बुझौंण लगी त हथेली बल्ब पर लगी और ठक  की आवाज ऐ और बल्ब चकनाचूर ह्वैकी भ्वा फर्श मा बिखिरी गे, और ब्वारीन  पोर बिटिकी पूछी, हे जी क्य ह्वे ?  बुढडीन बोली, होण क्यच बबा, लाल्टेन फुटिगी।          

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