Monday, February 18, 2013

पुराणा जमानै की छोटी-छोटी चुलबुली छ्वी- भाग-2


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जन की आप लोग भी जाण्दै छा कि छुआछूत की महामारी हमारा देश मा सदियों बिटिक रै। बड़ी जाति का लोग छोटी जाति का लोगु तैं अपणा धारा परौ पाणी भी नी पेण देंदा छा। एकि दा द्वी छोटी जाति का लोग शामवक्त बौंण बिटिकी घास-लाख्डू लीक अपणा घौर छा जाणा। द्वियोंन बोंण डाळौ परै ऑला(आंवला) खै छा, ए वास्ता  काफ़ी प्यास लगी छै  द्वियों तै। रुम्क  पड़गी छै, त बीच रस्ता मा बड़ी  जाति का लोगु कू धारु पड्दू छौ, द्वियोंन आपस मा ख़ुसर-फुसर करी कि अब अन्ध्यारू ह्वैगि हम कैन नि देख्ण्याँ ऐ वास्ता, सुट्ट करी यूंगै धारा परौ पाणी पेन्दा आज। फ़टाफ़ट द्वियोंन अपणा घास-लाकुड़ू का भाऱा भोंया बिसैन और ऊँची जाति का लोगुका धारा परौ छकै तै पाणि पिनी। वांका बाद जब चलण लगींन त  एक हाका मा बोल्णु कि देखि तिन, ई अप्णी मैड्या मण्स बिट हम तै किलै नि पेण देंदन अपणा धारा परौ पाणि? दूसरन  बोली, हाँ यार, कथ्गा मिट्ठु च यूंका धारा कु पाणी।
असल माँ द्वियोंका ऑला (आंवला)  जू छा खंया।      

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बुढडीका नौना ब्वारी  उन्द बिटिकी गौं ऐन त बुढडीन बडा चाव सी कड़ी (पल्यो)-भात बणौणै सोची। अब जनि पकण लगि त पल्यो कडै पर जोर-जोर सी उछ्लन लगी। बुढडी बडबडाण लग्गि कि हम पर यत क्वी देवता कु  दोष ह्वेगी, य त नौना-ब्वारी दगडी रस्ता फुंड़ो क्वी मशाण ऐगी। वीन गौं माँ ढीढोरा पिटे दिनी। जब खूब हल्ला मच्गी तब नौनन पूछी कि माँ तिन पल्यो माँ क्य-क्य डाली छौ ?  बुढडीन बोळी मिन सिर्फ तेरु लयां पैकिट परै थोडा सा बेसण ड़ाळी छौ छांछ मा, बस। नौनु सूणिक हैंसण बैठिग़े। असल मा वू लोगुकु  दगड़ा मा एक निरमा कु पैकेट छौ लयूं, हेराँ, बेचारि बूढीड तै की पता कि निरमा क्य होन्दु?             

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