Monday, February 11, 2013

वक्त औलु !











आज यु जु कर्न लग्यां छन, जनता तै बौगाणौ काम,
देख्दी रा, कै न कै दिन यूंकी भी मवासी लगली घाम। 
  
कैन सुददी नी बोली, 'भगवाना घौर देर च, अंधेर नी',
जथ्गै बटोरा, भोळ यक्खी छूट जाण सारु झाम-ताम। 

मांधाता च महिपति......, पर यूंकी त इन मरेगी मति,
इथ्गै ई सोची सकणा छन आज, कथ्गा हो झूटी हाम। 

सिर्फ लारा-दारा छन, जना बेशर्म तनि तौंका नारा छन,   
घूस खै-खैकी अर चोरी कै-कैकी,बिज़ा मोटी ह्वेगी चाम।

फुल्मुन्ड्या गबरु बण्याँ, फुंड धोल्याँ भी फुन्ड्या बण्याँ,  
आज सब्बीधाणी यूंक्व़ी च 'परचेत', दंड-भेद,साम-दाम।     

छवि गुगुल से साभार 

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