Tuesday, May 26, 2009

गढ़वाली गीत- तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ

खडा-खडी छुयों माना मिस्यो ,
भै तौ खुटयों ना तन कुस्यो ,
तू सरुली हे छुंयाल घस्यारी
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!

डाली-पांखियों मा चौड़ी-चौड़ीक
डांडी-कांठियों मा रौडी-रौडीक,
लाणकु द्वी पूली घासकि,
कख-कख गै दौडी-दौडीक
कब तकै रिग्ली तू चारी दिसौ
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!


डांडी-कांठियों मा बर्फ च
यख पालू लर्क-तर्क च,
फुर-फुर्या बतों चल्णु
बल्देणु भी सर्ग च,
भै हाती-खुट्यों ना तन चस्यो
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!

न सौर कर लुकारी तू
सेट्टू की छै ब्वारी तू
घास की फिकर नी मी तै,
मीकू तै छै प्यारी तू
तै कमरी तैना तन पिसौ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ ,
तै घास की भारी भोंयाँ बिसौ,तू घास की भारी भोंयाँ बिसौ!

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