Friday, May 22, 2009

उत्तराखंड क्यों नाराज है ?

उत्तराखंड की बीजेपी सरकार खासकर वहाँ के मुख्यमंत्री इस सदमे में है कि आखिर उनसे ऐसी कौन सी गलती हो गयी कि जो बीजेपी को राज्य में इस तरह की हार का मुह देखना पडा ? सड़के बनवाई, डैम बनवाये, काम में इमानदारी भी दिखाई, फिर भी....? यह अवस्य एक पेचीदा विषय बन गया होगा उनके लिए !

सरसरी तौर पर यह बात सही है कि इसमें बीजेपी की आंतरिक कलह और कार्यकर्ता द्बारा मुख्यमंत्री की इमानदारी को ज्यादा तबज्जो न देना, हार का एक प्रमुख कारण है, लेकिन उससे भी बड़ा कारण है, जनता में असंतोष ! मुख्यमंत्री महोदय को यह समझना होगा कि सिर्फ कुछ सड़के और डैम बना लेने भर से स्थानीय जनता की आकांछाये पूरी नहीं हो जाती! इतना बड़ा टेहरी डैम बना, क्या उत्तराँचल के सभी घर उससे रोशन हो गए? नहीं ! उत्तराँचल सिर्फ देहरादून तक नहीं बसता बल्कि असली उत्तराँचल दूर-दराज के पहाडी इलाको में बसा है , जहां बिजली की समस्या है, पानी की समस्या है, स्कूल की समस्या है, रोजगार की समस्या है, चिकित्सा सुबिधावो की समस्या है, सड़क मार्ग नहीं है, इत्यादि इत्यादि ! और जो एक समस्या धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती जा रही है, वह है बेरोजगारी ! पहले लोग कम थे, जनसँख्या कम थी, इसलिए युवा वर्ग आसानी से सेना में भर्ती हो जाता था, अथवा मैदानों का रुख कर कही पर प्राइवेट में नौकरी कर अपना भरण पोषण कर लेता था ! लेकिन अब ज्यों-ज्यों जनसँख्या और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, भर्ती संस्थानों में भर्ष्टाचार बढ़ता जा रहा है , यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है, और आज सबसे बड़ी प्राथमिकता है इससे निपटना ! जिसके लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर अधिक से अधिक रोजगार के अवसर जुटाए जाएँ !

एक लेख में हिमांचल के बारे में पढ़ रहा था कि शुरूआती दौर में किस तरह वहाँ की सरकार ने हिमांचल को एक प्रमुख फल उत्पादक राज्य बनाने में मदद की ! उसी लेख को पढ़ कर वही विचार मेरे भी दिल में अपने उत्तराखंड के लिए आया ! अभी कुछ समय पहले अपनी जन्मभूमि जाने का एक और सुअवसर प्राप्त हुआ था, यह देखकर दिल को बड़ा दुख पहुँचा कि गावं के गावं खाली पड़े है और वो सीढ़ी नुमा खेतो की कतारे बंजर होकर जंगल में तब्दील हो चुकी है ! जहाँ इसका एक प्रमुख कारण यह है कि लोग रोजी-रोटी की तालाश और मूलभूत सुविधावो के अभाव में मैदानों को पलायन कर गये, या कर रहे है, वहीँ दूसरा प्रमुख कारण यह भी है कि सरकार की उदाशीनता की वजह से स्थानीय कृषक अपने खेतो से वाँछित उत्पादन नही प्राप्त कर पाते! धन की कमी और परम्परागत खेती से ही जूझते-जूझते किसान हिम्मत हार बैठता है और मैदानों की ओर पलायन कर जाता है!

आज जबकि कहने को हम उत्तराखंडीयो का अपना अलग राज्य है , हमें चाहिए कि एक नए सिरे से उत्तराखंड आन्दोलन फिर से छेडा जाए और हर स्तर पर सरकार को इस बात के लिए मजबूर करे कि वह एक निश्चित कार्यक्रम के तहत, एक विधेयक लाकर, उन सभी कृषि योग्य वंजर पड़ी या शुष्क जमीन को अगले १० वर्षो के लिए अधिग्रहण करे ! (इस निर्धारित अवधि के बाद सरकार को वह जमीन, जमीन मालिक को वापस लौटाने का भरोसा दिलाना होगा और उके लिए पुख्ता इंतजाम भी करने होंगे, क्योंकि यह भी सत्य है कि लोग जमीन कब्जाने के लिए कानूनों का सहारा ले, नाजायज फायदा उठाने से नहीं चूकते ) !उस अधिग्रहित की हुई जमीन पर उपयुक्तता के हिसाब से फलदार वृक्ष जैसे अखरोट, नींबू , सेब इत्यादि लगाने चाहिए और अगले चार-पाँच सालो तक जब तक कि पेड फल देने लायक नही हो जाते उसकी नियमित देखभाल करने के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए ! इसके अलावा अन्य तरह की नकदी फसलो का भी इनपर प्रयोग किया जाना चाहिए! पाँच साल बाद जब वृक्ष फल देना सुरु करे तो अगले ४-५ सालो की इन फसलो को स्वयं बेचकर सरकार उस रकम की काफ़ी हद तक भरपाई कर सकेगी जो उसने इन पर खर्च की है, साथ ही स्थानीय बेरोजगार युवा वर्ग को रोजगार भी मिलेगा ! और मैं समझता हूँ कि सरकार के पास अगर इच्छाशक्ति हो तो इस प्रकिर्या को लागु करने में कोई बहुत बड़ी दिक्कत उसके सामने आनी नही चाहिए !

किसानो को खेती के बीज की ख़राब गुणवत्ता के कारण नुकशान उठाना पड़ता है सरकार को किसानो को अच्छे बीज और खाद उपलब्ध कराने के लिए उसमें सुधार करने की आवश्यकता है, वे उचित और किफायती मूल्य पर किसानो को उनके अपने विपणन क्षेत्र में / दरवाजे पर ; गुणवत्ता के बीज, समय से और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए सार्वजनिक, सहकारी और वितरकों और डीलरों के निजी नेटवर्क के माध्यम से यह सुनिश्चित करे! साथ ही ग्राम स्तर पर किसानो की सहकारी समीतियाँ बनायी जाए और पानी के संरक्षण के लिए उचित व्यवस्था की जाये !

इस काम में मदद के लिए स्थानीय भूतपूर्ब सैनिको की एक वटालियन तैयार कर बहुत ही कम कीमत पर उनकी सेवाए ली जा सकती है ! और वे लोग भी इस नेक काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे ! अगर यह सम्भव हो पाया तो यह निश्चित है कि २०२० तक अपना उत्तराखंड एक समृद्ध राज्य होगा और देश का एक विकसित भूभाग !

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