Wednesday, February 13, 2013

खैरी अपणी !











कै मा लगौण खैरी अपणी, कैगी  सांखी परै रोण,   
ई छोड़-कूडी का खातिर,अछाणा मा धरीं च मोण। 
  
डांडा-गदन्यों का सैरा सूखा पड्यां छुंया-दुङ्ग्ला, 
पाणि नी च कै भि धारा, मुक्क भी कखन धोंण।  

मैना का शुरुमा लोग रैंदा,मंयोडर कु बाटु हेरना,   
कुठारी नीच नाज-दाणी,क्यजु खांण अर कमोंण।

नौनौ अर ऊँ तै चैंदु, भरीं रोटी मा घी कु गोंदगु,  
गुठ्यारा बंधी भैंसी-गौडी,घास नीच कखी बौण। 
  
अपणि सूखी रोटी जाणू, अर कोस्डी परौ लोण,
कै मा लगौण खैरी अपणी, कैगी  सांखी परै रोण।      

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